'वीर' सावरकर की सच्चाई । भगोड़े, ग़द्दार, कटटरपंथी और अंग्रेज़ों के दलाल की आत्मगाथा। Veer 'Savarkar's Truth. Traitor, Extremist And Britisher's Agent Biography.

'वीर' सावरकर की सच्चाई । भगोड़े, ग़द्दार, कटटरपंथी और अंग्रेज़ों के दलाल की आत्मगाथा। Veer 'Savarkar's Truth. Traitor, Extremist And Britisher's Agent Biography. 
veer savarkar or britisher's agent

आज 'वीर' कहे जाने वाले डरपोक, भगोड़े, फासिस्ट सावरकर (1883-1966) की जयंती है जिसे कुछ चरमपंथी हिन्दू अपना हीरो मानते हैं और उसकी पूजा अर्चना करते हैं। यह कटटरपंथी भगोड़े वीर सावरकर को अपना हीरो क्यों मानते हैं चलिए जानते हैं। सावरकार की आत्मगाथा सुनकर कोई भी सच्चा देश भक्त अपना शीश शर्म से झुका देगा मगर कुछ कटटरवादी इस भगोड़े और अंग्रेज़ों के दलाल सावरकर को अपना हीरो मानते हैं क्योंकि वह उनकी मानसिकता के अनुकूल था।

कई हिंदुत्व के विचार वाले चरमपंथी हिन्दू इस भगोड़े, ग़द्दार को एक महान स्वतंत्रता सेनानी के रूप में उसकी प्रशंसा करते हैं, लेकिन उसके बारे में सच्चाई क्या है?

सच्चाई यह है कि भारत में ब्रिटिश शासनकाल के दौरान कई विद्रोहियों और कुछ सवतंत्र सेनानियों को अंग्रेजों ने गिरफ्तार किया था, और लंबे समय तक सजा दी थी जिसमें कटटरवादी विद्रोही सावरकार भी शामिल था। जेल में ब्रिटिश अधिकारियों ने उसे प्रताड़ना से बचने के लिए एक प्रस्ताव दिया: जिसमें कहा गया या तो तुम हमारे साथ सहयोग करो और हमारी प्रशंसा अपने लोगों के बीच करो, जिसके एवज़ में हम तुम्हें जेल से रिहा कर देंगे, या फिर तुम बाक़ी विद्रोहियों और सवतंत्र सेनानियों की तरह जीवन भर जेल में ही सड़ोगे।

उनमें से अधिकांश जो की विद्रोही थे सावरकर सहित अंग्रेज़ों के सहयोगी बन गए और सवतंत्र सेनानियों के खिलाफ मुखबरी करने लगे।
सावरकर 1910 तक एक विद्रोही के तौर पर अपना काम कर रहा था, जब उसे गिरफ्तार किया गया और दो बार कारावास दिया गया।

10 वर्षों तक जेल में रखने के बाद, अंग्रेजों ने इस कपटी से स्पष्ट रूप से सहयोग की पेशकश की, जिसे सावरकर ने फ़ौरन स्वीकार कर लिया जबकि देश के लिए लड़ने वाले देश प्रेमियों ने अपने घुटने अंग्रेज़ों के आगे नहीं टेके । जेल से बाहर आने पर इस कटटरपंथी विचारधारा वाले डरपोक सावरकर ने हिंदू सांप्रदायिकता का प्रचंड रूप से प्रचार करना शुरू कर दिया, और अंग्रेज़ों का दलाल बन गया। अंग्रेज़ों के साथ रहकर उसने दो धर्मों के बीच विभाजन और शासन की नीति अंग्रेज़ों से सीखी और ब्रिटिशर्स का ग़ुलाम बनकर उनके इशारों पर नाचने वाला ग़द्दार बन गया।

यह वही सावरकार था जिसने हिन्दू कटटरपंथी संस्था "हिंदू महासभा" की नीव लाला लाजपत रॉय और मदन मोहन मालव्या  के साथ रक्खी । हिन्दू महासभा के अध्यक्ष के रूप में, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, इसने मौके का फायदा उठाते हुए "पूरी राजनीति का हिंदूकरण और हिंदुत्व का विस्तार करना शुरू किया "। उसने भारत में मुसलमानो के खिलाफ रणनीति के अनुसार हिंदुओं को सैन्य प्रशिक्षण देने के लिए ब्रिटिश युद्ध के प्रयासों का समर्थन करने का निर्णय किया और हिन्दू महासभा और दीगर हिन्दू चरमपंथी सस्न्थानों से जुड़े हिन्दुओं को इखट्टा करने का काम शुरू किया।

जब कांग्रेस ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया था, तो ग़द्दार सावरकर ने उसकी आलोचना की और हिंदुओं से युद्ध के प्रयास में सक्रिय रहने, कांग्रेस का साथ ना देने और देश की आज़ादी में भाग ना लेने का आह्वाहन किया । उसने हिंदुओं से "युद्ध की कला" सीखने के लिए सशस्त्र बलों में भर्ती होने का आग्रह किया, लेकिन यह अपील उन हिंदुओं के लिए चुनिंदा थी जो मुसलमानो के प्रति  कठोर नफरत पालते थे और वह हिन्दू जो हिन्दू महासभा और दूसरे हिंदुत्व संसथान से जुड़े हुए थे।

क्या स्वतंत्रता सेनानी के रूप में इस ग़द्दार एवं भगोड़े का सम्मान और प्रशंसा क्या जा सकता है जिसने जीवन भर अंग्रेज़ों की दलाली की और हिन्दू मुस्लिम फसाद करवाए? जिसने फूट डालो और हुकूमत करो की पालिसी अंग्रेज़ों से सीखी और देश में नफरत का बीज बोया? जिसने अंग्रेज़ों के खिलाफ मुहीम में ना शामिल होने के लिए हिन्दुओं को वरग़लाया ? यह शख्स वीर शब्द का हकदार कदापि नहीं हो सकता। यह शख्स मानवता और देश प्रेम के नाम पर मात्र कलंक है।

असली वीर भगत सिंह, सूर्य सेन (मास्टर), चंद्रशेखर आज़ाद, बिस्मिल, अशफाकुल्ला, राजगुरु, खुदीराम बोस आदि थे, जिसमें ज़्यादातर को अंग्रेजों ने फांसी दे दी थी और जिसमें सावरकर की भूमिका संदिग्ध थी। अब आप ही सोचिये के ऐसे व्यक्ति को किस वजह से वीर कहा जा सकता है। वह एक भगोड़ा, डरपोक और अंग्रेज़ों का मुखबिर था और जो मुसलमानो के प्रति नफरत की भावना से पूरी तरह से ग्रस्त था ।

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