जब हुमायूं ने रानी कर्णवती के लिए बहादुर शाह से बदला लिया। When Humayun Took Revenge Of Rani Karnavati From Bahadur Shah.
जब हुमायूं ने रानी कर्णवती के लिए बहादुर शाह से बदला लिया। When Humayun Took Revenge Of Rani Karnavati From Bahadur Shah.
आज जिसतरह से भगवावादी कट्टरपंथी समुदाय मुस्लिम शासकों को लेकर नफरत फैलाते दिखाई देते हैं तथा जिसतरह से भारतीय फिल्मों में मुस्लिम शासकों को क्रूर साबित करने की होड़ लगी रहती है उनके ज़ेहनों में बस एक ही बात चलती रहती है और वह होती है हिन्दू बनाम मुस्लिम के और तथ्यों और इतिहास को पूरी तरह से बदल कर दिखाया जाता रहा है जबकि वह समय हिन्दू बनाम मुस्लमान जैसे कट्टरपंथ पर आधारित नहीं था जिसकी एक मिसाल आज मैं यहाँ बयान करने जा रहा हूँ |
आज मैं रौशनी डालूंगा रानी कर्णावती और हुमायूं के ऊपर | जानिये के किसतरह से रानी कर्णावती ने महान राजा हुमायूं से मदद की गुहार लगाई थी और हुमायूं ने किस तरह से बहादुर शाह से रानी कर्णावती का बदला लिया था |
जब हुमायूं ने रानी कर्णवती के लिए बहादुर शाह से बदला लिया। When Humayun Took Revenge Of Rani Karnavati.
रानी कर्णवती को रानी कर्मवती के नाम से भी जाना जाता है | उनकी पैदाइश 8 मार्च 1535 में हुई थी और जो भारत की बुंदी की राजकुमारी और अस्थायी शासिका थीं । मेवाड़ साम्राज्य की राजधानी चित्तौड़गढ़ के राणा संगा से उनकी शादी हुई थी। वह राणा विक्रमादित्य और राणा उदय सिंह की मां और महाराणा प्रताप की दादी थीं। उन्होंने 1527 से 1533 तक बूंदी की कमान संभाली और राज्य के लिए अपना कार्य अंजाम दिया।
1526 ईस्वी में बाबर के दिल्ली के सिंहासन पर कब्जा करने के बाद, मेवाड़ के राणा संग्राम सिंह या राणा संगा ने बाबर के खिलाफ दिल्ली के सिंहासन पर कब्जा करने के लिए राजपूत शासकों का एक संघ तैयार करना शुरू किया ताकि बाबर को दिल्ली के तख़्त से उखाड़ फेंका जा सके। लेकिन 1527 में महान बाबर के साथ हुई खानुआ की युद्ध में, संयुक्त हिंदू ताकतों को पराजय का सामना करना पड़ा | बाबर निहायत ताक़तवर और सूझबूझ वाला पराकर्मी शासक था जिसे पराजय करना इतना आसान नहीं था जैसा की राजपूतों ने सोचा था लिहाज़ा इस जंग में राणा संगा पराजित हुआ और जंग के मैदान में लगे घावों के वजह से बाद में उनकी मृत्यु हो गई।
राणा सांग की मौत के बाद रानी कर्णवती ने उस समय अपने बड़े बेटे विक्रमादित्य जो की एक कमजोर शासक था के नाम पर राज गद्दी संभाला । इस बीच, गुजरात के बहादुर शाह ने दूसरी बार मेवाड़ पर हमला किया था, जिनके हाथ विक्रमादित्य को पहले भी पराजय का सामना करना पड़ा था। यह रानी के लिए बड़ी चिंता का विषय था।
रानी कर्णावती की फ़ौज जो की पहले भी बहादुर शाह के हमले को झेल चुकी थी बड़ी डरी हुई थी और उनकी सहायक सिसोदिया फौजें भी उनका साथ देने के लिए तैयार नहीं थी | वह दोबारा से विक्रमादित्य के लिए लड़ने के लिए बिलकुल तैयार नहीं थी क्योंकि वह एक कमज़ोर शासक था | ऐसे हालात में रानी कर्णवती ने अपने राज्य के रईसों और सिसोदिया फौजों को खत लिखा जिसमें उन्होंने कहा की वह विक्रमादित्य के लिए भले ही ना लड़ें पर वह मेवार के लिए लड़ने के लिए उनका साथ दें । महारानी की एकमात्र शर्त यही थी कि विक्रमादित्य और उदय सिंह को उनकी निजी सुरक्षा को धेयान में रखते हुए बुंदी भेज देना होगा । जब रानी ने देखा की उनके फ़ौज का मनोबल गिरा हुआ है और ऐसे हालात में जंग का जीतना मुमकिन नहीं है तोह रानी ने मुगल सम्राट हुमायूं को राखी भेजा जिसके साथ उनकी मदद के लिए एक खत भी रवाना किया गया था जिसमें हुमायूं को भाई मान कर मदद मांगी गई थी। इस प्रकार तबसे आजतक रक्षा बंधन के त्यौहार के तौर पर इसे मनाया जाता रहा है |
रानी कर्णवती ने अपने बेटों को बुंदी भेज दिया और उनकी भरोसेमंद नौकरानी पन्ना दाई को उनके साथ जाने और उनकी अच्छी देखभाल करने के लिए साथ रवाना कर दिया गया । पन्ना ऐसे हालात में जाने के लिए अनिच्छुक थीं, लेकिन रानी की इच्छाओं के सामने जब रानी ने उन्हें विश्वास दिलाया की महारानी के समर्थन के लिए महान हुमायूं से अपेक्षित मदद का वादा मिल चूका है तब पन्ना ने आत्मसमर्पण कर मेवाड़ छोड़ चुपके से उनके बेटों को लेकर बूंदी रवाना हो गई | हालांकि उस समय चित्तौड़ के हालात बहुत खराब थे और सिसोदिया बहादुरी से लड़े तो थे लेकिन वे अधिक संख्या में नहीं थे और पहले भी युद्ध हार चुके थे ऐसे में सिर्फ हुमायूं का ही सहारा था । हुमायूं जो उस समय बंगाल के सरहद पर जंग में व्यस्त थे, ने कृपापूर्वक जवाब दिया और रानी कर्णवती को उनकी सहायता का आश्वासन भी दिया | रानी के खत मिलने पर हुमायूं ने बंगाल पर जीत के लक्ष्य को बीच में ही छोड़ दिया और वह चित्तौड़ की तरफ तेज़ी से रवाना हुआ मगर चूँकि रानी का खत उन्हें मिलने में काफी देरी हो गई थी लिहाज़ा वह समय पर मेवाड़ नहीं पहुंच सके। जब हुमायूं रास्ते में थे तब बहादुर शाह ने चित्तौड़गढ़ पर हमला कर दिया। यह समझते हुए कि हार निकट थी, कर्णवती और महल की अन्य राजपूत महिलाओं ने 8 मार्च, 1535 ईस्वी को जौहर के नाम से खुद को आग के हवाले कर दिया, जबकि सभी पुरुषों ने भगवा कपड़े डाले और लड़ते हुए मृत्यु से जा मिले | हुमायूं जब पहुंचा तोह देर हो चुकी थी उस समय हुमायूं ने इसका बदला लेने की ठानी | 1535 में हुमायूं ने इसी मक़सद के तहत मुंडी पर चढ़ाई करदी और बहादुर शाह को पराजय कर अपनी मुंह बोली बहन रानी कर्णवती की मौत का बदला लिया।
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