गर्व है मुझे के मैं भारत्या मुस्लमान हूँ। मेरा धर्म मुझे महिलाओं का सम्मान करना सिखाता है। I am proud of me being an Indian Muslim. My religion teaches me how to respect women|
गर्व है मुझे के मैं भारत्या मुस्लमान हूँ। मेरा धर्म मुझे महिलाओं का सम्मान करना सिखाता है। I am proud of me being an Indian Muslim. My religion teaches me how to respect women|
अनस हम्ज़ा की रिपोर्ट |
नई दिल्ली। 27/07/2019
कल तक तो मैं शुक्र अदा करता था की मैं मुस्लमान हूँ और आज हिन्दू समुदाय की इतनी घिनौनी मानसिकता देखने के बाद मुझे फख्र है की मैं उस मज़हब का हिस्सा हूँ जो क़ुरान और सुन्नत के बनाये गए उसूल पर अमल करता है; हाँ हम में कुछ खामियां भी हैं जो हमें दुरुस्त करनी होंगी जैसे की सबसे बुरी चीज़ जहेज़ जिसे हम सारे मुस्लमान भाइयों को लेने और देने से मना करना होगा और वह भी दिल से ताकि किसी ग़रीब की बेटी जहेज़ ना देने के वजह से घर पर ना बैठी रह जाये। हमें यह भी समझना होगा की क़ुरान में अल्लाह ने सबसे पहला लफ्ज़ इल्म के बारे में कहा है "इक़रा" यानी पढ़ो इल्म हासिल करो; हमें अपने बच्चों को खूब पढ़ाना होगा महज़ इसलिए नहीं की उन्हें कोई छोटी मोटी नौकरी मिल जाए और घर का गुज़ारा हो जाए बल्कि हमें हर उस बड़े और आला शोबे का हिस्सा बनना होगा तभी हमारे हालात बदलेंगे।
आज मुस्लिम मुल्कों में हर बड़े ओहदे पर चाहे वह एचआर मैनेजर हो, फाइनेंस कंट्रोलर हो, कॉस्ट कंट्रोलर हो, चीफ अकाउंटेंट हो सब पर हिन्दुओं की हुकुमरानी है और वह अपने धर्म के लोगों को लाते हैं जबकि मुस्लमान को किसी ना किसी बहाने रिजेक्ट कर दिया जाता है। अगर इन ओहदों पर हमारे लोग होते वह भी वह जिनको क़ौम की मदद करना हो तोह कितना अच्छा रहता मगर हमारे लोग ऐसे ओहदों पर आकर भी कुछ नहीं करते जबकि सिख, ईसाई, हिन्दू सब अपने कम्युनिटी के बारे में सोचते हैं इसलिए ज़रूरी है की हमें भी यह समझना होगा।
भले ही हमारे साथ कितना भी भेदभाव किया जाता है मगर फिर भी हम आगे बढ़ते हैं इस जज़्बे को खुश्क नहीं होने देना है और सोच का दायरा बड़ा करना है। हमारे यहाँ अच्छी बात यह है की हम औरतों की इज़्ज़त और एहतराम करते हैं। हमारे इलाक़े में बच्चियों को स्कूल भेजने में डर नहीं लगता, हमें यह खौफ नहीं होता की रास्ते में कोई कुछ कर ना दे । दूसरे धर्मों की देखें तो आये दिन जहेज़ उत्पीड़न के वजह से ससुर बहु पर हर तरह का अत्त्याचार करता है यहाँ तक की बलात्कार भी करता है; बच्चियों के पैदा होने से पहले उस औरत की कोख उजाड़ दी जाती है। घर अकेला पा कर देवर और भाभी में रिश्ते बनते देखा है हमने। नाता प्रथा के नाम पर उनके धर्म की औरतों को हवस मिटाने का जरिया बना लिया जाता है सिर्फ इतना ही नहीं आश्रम और मंदिरों में बलात्कार की कई घटनाएं सामने आती रही हैं जबकि ऐसे कई सारे मामले छुपा लिए जाते हैं। हमारे यहाँ औरत को अकेली देख कर मुस्लमान मर्द अपनी आँखें झुका लेते हैं और ज़रूरत पड़ने पर बहन समझ कर मदद करते हैं; बहन को बहन, बीवी को बीवी और माँ के लिए कहते हैं की उनके क़दमों के नीचे जन्नत है; जबकि वहीँ दूसरी तरफ हिन्दुओं में औरत को अकेली देख कर हिन्दू मर्द कुत्ते की तरह लार टपकाते हुए दिखाई देते हैं और मौक़ा मिलते ही हवस का जरिया बना लेते हैं। हमारे यहाँ बूढ़े बुज़ुर्ग को घर का एक अहम् रुक्न मानते हैं और उन्हें इज़्ज़त देते हैं जबकि दूसरी तरफ हिन्दुओं में बूढ़े बुज़ुर्ग को ओल्ड एज होम में फ़ेंक दिया जाता है या तो फिर वृन्दावन में ले जाकर छोड़ दिया जाता है जहाँ वह ज़िन्दगी के बाक़ी साल भीक मांग कर या फिर बाहरी मुल्कों से आने वाले सैलानियों को अपना शरीर बेच कर गुज़ार देती हैं। शुक्र है और फख्र है की हम मुस्लमान हैं। हमें गर्व है हमारे मुस्लमान होने पर।
यह ज़रूरी है की हम अपने एख़लाक़ का बेहतर मिसाल क़ायम करें। आपसी इत्तेहाद को और मज़ीद बेहतर बनाएं और एक दूसरे की मदद करें। अपने समाज को और बेहतर बनाएं। अपने दिलों में नफरत का ज़हर जिन्हें बोना है वह बोये पर हम खुद को इस नफरत के हवाले नहीं कर सकते। हम नहीं चाहते की इस नफरत का असर हमारे घरों पर पड़े और हमारा मुआशरा खराब हो। उनके घरों में ढेरों पैसे होते हुए भी बेसकुनि का आलम है, ज़हर है, नफरत है, घृणा है पर हमें ऐसा नहीं बनना है। आखिर में यही कहूंगा की खूब पढ़ाओ अपने बच्चों को इतना की वह हर शोबे में अपना नाम दर्ज करें। पर हाँ उनका बुनियाद इस्लाम हो वह भी पुख्ता ताकि वह अच्छे और बुरे में तमीज कर सके, ताकि उनमें मिल्लत का जज़्बा हो और गुनाह और सवाब का ज़ेहन में एहसास रहे और बुराई की तरफ ना जाएँ।
टिप्पणियाँ