"मुसलमानो में तालीम की शिद्दत से कमी । तालीम को पूरी तरह से मुस्लिम समाज ने नज़रअंदाज़ किया" हामिद अंसारी । Muslim Community Completely Ignored Education Between Them; Ex-Vice President Hamid Ansari

"मुसलमानो में तालीम की शिद्दत से कमी । तालीम को पूरी तरह से मुस्लिम समाज ने नज़रअंदाज़ किया" हामिद अंसारी । Muslim Community Completely Ignored Education Between Them; Ex-Vice President Hamid Ansari

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हमारे मौलवी मुल्ले जी को सुन्नी वहाबी देओबंदी और बरेलवी के मसलों से और समाज में नफरत फैलाने से फुर्सत ही नहीं तोह भला तालीम जैसी अहम्ची ज़ के ऊपर क्यों धेयान दिया जाए, बिना इल्म हासिल किये ईमान से काम चल ही जाता है और यही वजह है मुसलमानो के पिछड़ेपन का, साथ ही खुद मुसलमानो के बीच इस बात को लेकर कोई जागरूकता ही नहीं है। कुछ लोगों का सोचना महज़ इतना ही है की कुछ पढ़ले और कुछ कमा ले और बस यही चक्करों में वह आधी अधूरी तालीम हासिल करते हैं या फिर सरे से ख़ारिज कर देते हैं जिसका खामियाज़ह आज मुस्लिम समाज उठा रहा है। 



मुसलमानो के दरमियान कोई ऐसी संस्था ही नहीं जो सोशल रिफार्म का काम करे और लोगों को तालीम की अहमियत बताये। जबकि शुरू से ही सर सय्यद अहमद खान से लेकर मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने शिक्षा के मैदान में कई कीर्तिमान रचें हैं पर कहते हैं ना की चिराग़ तले अँधेरा। कुछ ऐसी ही हालत इस समय मुस्लिम समाज की है की इनके बीच से ही बड़े बड़े तालीम याफ्ता लोग आये पर मुस्लिम समाज तालीम की रौषनी से दूर रहा।

नई दिल्ली: पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने शुक्रवार को मुस्लिम समुदाय के सामने आने वाले दीगर मुद्दों का हवाला देते हुए कहा की मुसलमानो के दरमियान कई सारे मुद्दे हैं मगर जो सबसे अहम् मुद्दा है वह मुसलमानो में शिक्षा का अभाव है।



उन्होंने कहा की "शिक्षा ग्रहण करना सभी का अधिकार है मगर इस मामले में जो समुदाय सबसे पीछे रहा है वह मुसलमान है क्योंकि उनके दरमियान उन्हें जागरूक करने वाली संस्थाएं मौजूद नहीं जो शिक्षा के महत्त्व को बताये"।

उन्होंने बताया की "दिल्ली में बड़ी संख्या में सिख हैं और उनमें से अधिकतर शरणार्थियों थे। उन्होंने ना केवल खुद को पुनर्वास किया है बल्कि अपने धार्मिक संस्थानों के साथ-साथ उनके शैक्षणिक संस्थान भी स्थापित किए हैं। यदि कोई छोटा सा समुदाय ऐसा कर सकता है, तो फिर मुस्लिम समुदाय इस से पिछड़ा हुआ क्यों है?।

उन्होंने यह भी कहा की मुस्लिम समाज के स्थानीय सोशल आर्गेनाईजेशन सामने आएं और मानसिक बाध्यताओं को दूर करने का प्रयास करते हुए उन्हें इसका महत्व समझाएं। 

उन्होंने यह भी कहा कि यह फॉर्मूला यानी आपसी (बातचीत) ने दुनिया के विभिन्न हिस्सों में अपना काम किया है, और उन्हें कोई कारण नहीं दिख रहा है कि यह मुस्लिम समाज में क्यों काम नहीं करेगा।



सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोसाइटी एंड सेक्युलरिज्म द्वारा भारतीय सुधारवादी-लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता को समर्पित व्याख्यान का आयोजन किया गया था जिसमें मुसलमानो के तालीम और हालात के ऊपर चिंता जताई गई थी।

व्याख्यान प्रदान करते हुए, एजी नूरानी, ​​वकील, सुप्रीम कोर्ट और संवैधानिक विशेषज्ञ ने मुसलमानों को राष्ट्रीय मुद्दों में खुद को शामिल करने की सलाह दी।

उन्होंने यह भी कहा कि "भेदभाव से इंकार करना सच को अस्वीकार करना है पर इसको कठोर सच मान कर बैठ जाना सही नहीं है इस से आपकी हिस्सेदारी ही ख़त्म हो जायेगी"।



टिप्पणी
मुसलमानो को चाहिए की वह आपसी भेदभाव और मस्लकी बयानबाज़ी को छोड़कर तालीम पर अपना फोकस करें और खुद को सरकार के मुख्तलिफ शूबों में अपना हिस्सा लें ।

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