कभी तुम खुद ज़लज़ला हुआ करते थे आज ज़लज़लों से डरते हो? "मौलाना अबुल कलाम आज़ाद"। "Before You Were An Earthquake Today You Are Afraid With The Same" Maulana Abul Kalam Azaad.
कभी तुम खुद ज़लज़ला हुआ करते थे आज ज़लज़लों से डरते हो? "मौलाना अबुल कलाम आज़ाद"। "Before You Were An Earthquake Today You Are Afraid With The Same" Maulana Abul Kalam Azaad.
यह मुसलमानो का जानना ज़रूरी है की मौलाना आज़ाद कौन थे और देश की आज़ादी की लड़ाई में उनका कितना बड़ा योगदान था । आज की मुस्लिम पीढ़ी बस स्कूल की किताबों तक ही उनको सिमित रख चुके हैं । न तो उनको उनसे कोई वास्ता है और ना ही उनके द्वारा किये गये बड़े बड़े कामों की कोई परवाह ही है और ना ही उनके द्वारा दी गई सदा को । ऐसे हालात में मुसलमानो को चाहिए की वह उन्हें किताबों से बाहर लाये । मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ठीक सर सय्यद अहमद खान की तरह मुसलमानो में तालीमी बिदारी और सियासी बिदारी चाहते थे । उनके वह स्पीच जो उन्होंने जमा मस्जिद से दी थी ज़रूर सुनें क्योंकि वह आपको बेदार करने के लिए है और जो मैं यहाँ पोस्ट भी कर रहा हूँ । खुद को जानिए समझये के आप किया हुआ करते थे और आज आप किया हो गये हैं । कल जो आप से कांपते थे आज आप उनसे काँप रहे हैं । कल आप एक ज़लज़ला हुआ करते थे और आज आप अंधेरों से डरने लगे हो । यह मेरे अलफ़ाज़ नहीं हैं बल्कि यह अलफ़ाज़ मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की हैं जो आपकी दिलेरी को ललकार रहे हैं वह भी आज के समय में ।हैं । चलिए आप उन तारीखी शख्सियत को ज़िंदा करें ना करें मेरा तो काम है की आपको उनके बारे में ज़रूर बताऊँ ।
अबुल कलाम आजाद, पूरा नाम अबुल कलाम गुलाम मुहुद्दीन, जिन्हें मौलाना अबुल कलाम आजाद या मौलाना आजाद भी कहा जाता है, (11 नवंबर, 1888 में मक्का यानी सऊदी अरब में पैदा हुए थे और जिनकी मृत्यु 22 फरवरी, 1958 में नई दिल्ली, भारत में हुई । वह इस्लामिक धर्मविज्ञानी थे जो 20 वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के नेताओं में से एक थे। उच्च नैतिक अखंडता के एक व्यक्ति के रूप में उन्हें अपने पूरे जीवन में अत्यधिक सम्मानित किया गया था।
आजाद के पिता भारत्या मुस्लिम विद्वान थे और जो उस समय अपनी अरबी पत्नी के साथ मक्का में रहते थे । जब आज़ाद जवान हुए, तब परिवार समेत वह अपने वतन भारत यानि कलकत्ता जो अब कोलकाता के नाम से जाना जाता है वापस आ गए । यहाँ उन्होंने अपने पिता और अन्य इस्लामी विद्वानों से घर पर ही पारंपरिक इस्लामी शिक्षा हासिल की । हालांकि, वह इस बात से भी प्रभावित थे कि भारतीय शिक्षक सर सय्यद अहमद खान ने अच्छी तरह से शिक्षा प्राप्त करने के लिए बहुत काम किया था, उन्होंने अंग्रेजी की उच्य स्त्र्य शिक्षा भी प्राप्त की थी ।
आज़ाद जब छोटे ही थे तो वह पत्रकारिता में सक्रिय हो गए, और 1912 में उन्होंने कलकत्ता में अल-हिलाल ("द क्रिसेंट") नाम से एक साप्ताहिक उर्दू भाषा अख़बार प्रकाशित करना शुरू किया। यह अखबार जल्दी ही मुस्लिम समुदाय में ब्रिटिश विरोधी रुख के कारन अत्यधिक प्रभावशाली हो गया । बढ़ती लोकप्र्यता देखते हुए अंग्रेज़ों ने अल-हिलाल अखबार को जल्द ही प्रतिबंधित कर दिया, जैसा कि वह एक दूसरा साप्ताहिक समाचार पत्र था जिसे उन्होंने शुरू किया था। जहां वह 1920 की शुरुआत तक बने रहे। वह बाद में कलकत्ता वापस आये और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (कांग्रेस पार्टी) में शामिल हो गए और भारत के मुस्लिम समुदाय से सिआसत में आगे बढ़ने की अपील की। वह अल्पकालिक खिलाफत आंदोलन (1920-24) तक विशेष रूप से सक्रिय थे, जिन्होंने तुर्क सुल्तान को खलीफा (विश्वव्यापी मुस्लिम समुदाय के प्रमुख) के रूप में स्थापित किया और यहां तक कि संक्षेप में मोहनदास गांधी को भी भरपूर समर्थन दिया।
मौलाना आजाद और महात्मा गांधी एक दूसरे से क़रीब हुए, और मौलाना आजाद गांधी द्वारा सत्याग्रह अभियानों में पूर्णरूप से शामिल रहे, जिसमें साल्ट मार्च यानि नमक आंदोलन (1930) शामिल थे। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश विरोधी आज़ाद भारत के अभियान में उनकी भागीदारी बहुत अहम् रही और वह 1920 से लेकर 1 945 तक इसमें खूब बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। आजाद 1923 में कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष बने और फिर 1940-46 में भी रहे - हालांकि पार्टी अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान काफी हद तक निष्क्रिय थी, क्योंकि लगभग सभी पार्टी नेता उस समय जेल में थे।
युद्ध के बाद आजाद उन भारतीय नेताओं में से एक थे जिन्होंने अंग्रेजों के साथ भारतीय स्वतंत्रता के लिए बातचीत की थी। उन्होंने अथक रूप से एक ऐसे भारत के लिए वकालत की जो स्वतंत्र भारत और पाकिस्तान में ब्रिटिश भारत के विभाजन का जोरदार विरोध करते हुए हिंदुओं और मुस्लिम दोनों को गले लगाना चाहते थे । बाद में उन्होंने विभाजन के लिए पाकिस्तान के संस्थापक कांग्रेस पार्टी के नेताओं और मोहम्मद अली जिन्ना दोनों को दोषी ठहराया। दो अलग-अलग देशों की स्थापना के बाद, उन्होंने 1947 में जवाहरलाल नेहरू की भारत सरकार में उनकी मृत्यु तक उन्होंने शिक्षा मंत्री के रूप में अपना कार्य किया।
तोह यह थे मौलाना आज़ाद । पढ़िए उनकी वह दिल की गहराई से दी गयी वह सदायें जिन्हें आज हर मुस्लमान को पढ़ना और समझना चाहिए ।
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