भारत में पांच में से हर एक दलितों और मुसलमानो को करना पड़ रहा है भेदभाव का सामना | Discrimination Ratio Of Dalits And Muslims In India; Survey Report.

भारत में पांच में से हर एक दलितों और मुसलमानो को करना पड़ रहा है भेदभाव का सामना | Discrimination Ratio Of Dalits And Muslims In India; Survey Report. 

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Discrimination Against Muslims and Dalits In India; Survey Report. 

मोबाइल फोन सर्वेक्षणों का उपयोग करते हुए एक नए अध्ययन में पाया गया कि दलितों और मुसलमानों का एक महत्वपूर्ण अनुपात भारत में काफी हदतक भेदभाव का सामना कर रहा है ।

भारत के आज़ाद होने के बाद से लेकर आजतक दलितों और मुस्लिमों की हालत में सुधर नहीं आ पाया इसकी सबसे ख़ास वजह यह रही है की दोनों ही समुदायों को शिक्षा और नौकरियों से वंचित रक्खा गया है । देश आज़ाद तो हुआ मगर दोनों ही समुदाय के हालात में ज़्यादा बदलाव नहीं आ पाया । देश में इनसे हर मामले में भेदभाव किया जाता रहा है ।

नई दिल्ली: दलितों और मुसलमानों को अपने दैनिक जीवन में किस तरह का भेदभाव होता है? रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर कंपासिनेट इकोनॉमिक्स द्वारा एक नया अध्ययन मोबाइल फोन सर्वेक्षण डेटा का उपयोग करते हुए यह पता चलाने की कोशिश की के भारत में दलित और मुस्लिमों के साथ किस हदतक भेदभाव होता है।

इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली का नवीनतम संस्करण में प्रकाशित अध्ययन 2016, 2017 के बीच दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मुंबई में 2,124 दलितों और मुस्लिमों के मोबाइल फोन सर्वेक्षण पर आधारित है। अध्ययन में पाया गया की इन क्षेत्रों में जाति भेदभाव काफी प्रचलित है ।

दिल्ली में एक अनुपात के मुताबिक़ हर पांच में से एक दलित ने जाति भेदभाव का सामना किया। मुंबई में, 25% दलितों और 30% मुसलमानों ने व्यक्तिगत रूप से सरकारी अधिकारी के साथ बातचीत में भेदभाव का अनुभव किया। भेदभाव के लिए एक और आम स्थान स्कूल है, जहां भेदभाव की रिपोर्ट भौगोलिक क्षेत्रों और समूहों में 10% से 25% तक थी। चिंताजनक बात यह है कि लेखकों का मानना ​​है कि समस्या की वास्तविक सीमा भी बड़ी हो सकती है। 

जाति भेदभाव के व्यक्तिगत अनुभव के अलावा, लेखकों ने राजस्थान और मुंबई में दलितों और मुस्लिमों से भेदभाव की अपनी धारणाओं के बारे में भी पूछा। लेखकों के मुताबिक, भेदभाव की धारणा भी मनोवैज्ञानिक कल्याण, उम्मीदों और आकांक्षाओं को प्रभावित कर सकती है। उनके अनुसार मुंबई और राजस्थान दोनों में, 60% से अधिक दलितों और मुसलमानों का मानना ​​है कि उनके समुदायों के साथ भेदभाव होता है।

जबकि लेखक स्वीकार करते हैं कि भेदभाव को बेहतर तरीके से मापने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है, इन निष्कर्षों से उजागर होता है कि कैसे एक भरोसेमंद समाज बनाने के लिए डिजाइन किए गए संस्थानों में भेदभाव का सिलसिला जारी है।

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