मुहम्मद बिन कासिम को मध्यकालीन भारत पर आक्रमण करने के लिए किसने और क्यों मजबूर किया | Who and What Led Muhammad Bin Qasim To Invade On Medieval India.
मुहम्मद बिन कासिम को मध्यकालीन भारत पर आक्रमण करने के लिए किसने और क्यों मजबूर किया | Who and What Led Muhammad Bin Qasim To Invade On Medieval India.
अक्सर हिन्दुओं द्वारा मुहम्मद बिन क़ासिम पर आक्रमण करने और मंदिरों को ध्वस्त करने अथवा जबरन धर्मांतरण का आरोप लगाया जाता रहा है मगर वह यह भूल जाते हैं के वह किया हालात थे जिसकी वजह से मुहम्मद बिन क़ासिम को भारत पर हमला करने पर मजबूर होना पड़ा था |
यह लेख इतिहासकार स्टैनले लेन की पुस्तक से लिया गया है जिसमें उन्होंने सच्चाई को सामने रक्खा है | पूरा पढ़ें |
अरब में उस समय खिलाफत का दौर था | 'इमाद अद-दीन मुहम्मद इब्न कासिम अथ-थाकाफी जो की 695 से लेकर 715 तक खलीफा उमायाद का जनरल था और जिसने उमायाद खलीफा के लिए सिंधु नदी (जो की अब पाकिस्तान का एक हिस्सा है) के मार्ग से होता हुआ सिंध और मुल्तान क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की थी। वह ताइफ शहर (जो सऊदी अरब में है) में पैदा हुआ और पला बढ़ा था। मुहम्मद बिन कासिम की सिंध और मुल्तान के दक्षिणी हिस्सों में भारतीय उपमहाद्वीप पर विजय प्राप्त करने की बड़ी दिलचस्प तारिख है ना की कोई कहानी ।
मुहम्मद बिन कासिम के पिता कासिम बिन यूसुफ ताइफ शहर के थाकिफ क़ाबिले के एक सदस्य थे | जब मुहम्मद बिन कासिम बच्चे थे तब तब उनकी मां ने क़ासिम की शिक्षा और देखभाल को अकेले अंजाम दिया था । उमायद के गवर्नर अल-हाजज इब्न यूसुफ अल-थकाफी जो की मुहम्मद बिन कासिम के चाचा थे उन्होंने मुहम्मद बिन कासिम को युद्ध और शासन के बारे में सीखने और तरबियत देने में उस वक़्त महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे। मुहम्मद बिन कासिम ने सिंध जाने से कुछ ही समय पहले अपने चचेरे भाई अल-हज्जाज की बेटी जुबैदाह से विवाह किया था।
मशहूर लेखक बर्जिन के अनुसार, भारतीय क्षेत्र में खलीफा उमाय्याद की दिलचस्पी और हमला करने की असल वजह सिंध राजा दाहिर से मुस्लिमों के जहाजों पर क़ब्ज़ा करवाने, लूट मार मचाने और मुस्लिम पुरुषों और मुस्लिम औरतों को बंदी बनाकर कारावास में रखने तथा उनका शोषण करने के मुख्य कारण थे । उमम्याद सबसे पहले गांधार के काबुल शाही से खैबर पास के माध्यम मार्ग पर नियंत्रण पाने की असफल कोशिश की फिर उन्होंने गांधार के दक्षिणी पड़ोसी सिंध में अपना दूसरा मोर्चा खोलने में कामयाब रहे ।
लेखक विंक के मुताबिक, इस क्षेत्र में उमाय्याद की दिलचस्पी मेड्स (सिंध में रहने वाले सिथियन लोगों का एक जनजाति) और अन्य लोगों के वजह कर हुई थी। मेड्स ने उस्वक़्त कुछ सालों पहले ससानीड जहाज़ों पर जो की टिग्रीस दहाने से निकल कर श्रीलंकाई तट तक पहुँचती थी वहां पर अपने समुद्री डाकू लगा रक्खे थे और अब वह कच्छ, डिबल और कठिवार में अपने डाकुओं द्वारा अरब जहाज़ों पर हमला करके लूट मार मचा रहे थे । उस समय, सिंध अल-हिंद का जंगली सीमावर्ती क्षेत्र था, जो ज्यादातर हमला अवर डाकुओं से भरा पड़ा थे और जिनकी गतिविधियों ने पश्चिमी हिंद महासागर में अधिकतर अरब कारोबारियों को परेशान कर रक्खा था। हिस्टोरियन ने इस बात पर जोर देकर कहा कि यह वह महत्वपूर्ण गतिविधियों को डेबल समुद्री डाकू और अन्य लोगों द्वारा तेजी से महत्वपूर्ण भारतीय व्यापार मार्गों के साथ लूटमार करने का नतीजा था जिसने अरबों को अपनी बंदरगाहों और समुद्री मार्गों को डाकुओं के चंगुल से छुड़ाने और छेत्र पर अपना नियंत्रण बनाये रखने के लिए उस क्षेत्र को अधीन करने के लिए मजबूर कर दिया था | बता दें के उस वक़्त तक सिंध पर कोई हमला नहीं किया गया था और ना ही उसे अपने नियंत्रण में लिया गया था | अल हज्जाज के गवर्नर होने के दौरान, डेबल के मेड्स ने अपने छापे मार डाकुओं द्वारा श्रीलंका से अरब तक यात्रा करने वाली मुस्लिम महिलाओं का अपहरण कर लिया था, इस तरह उमायाद की बढ़ती हुई शक्ति के दौरान इस तरह की गतिविधयों ने उसे एक मौक़ा प्रदान किया जिसका नतीजा यह हुआ की उमायाद को मकरान, बलूचिस्तान और सिंध क्षेत्र में एक पायदान हासिल करने में मदद मिली |
साथ ही उस समय के अरब शाशन काल के दौरान कुछ अरब विद्रोहियों को शरण प्रदान करने के कारण को भी सामने रक्खा गया है जो विद्रोही अरब से भाग गए थे ।
इन अरबों को बाद में डीबल के गवर्नर प्रताप राय द्वारा कैद कर लिया गया था। उसी में से एक अरब लड़की ने प्रताप राय की जेल से बाहर निकलने के लिए हज्जाज बिन यूसुफ से मदद के लिए एक दुख भरा पत्र लिखा जिसमें उसने अपनी पीड़ा व्यक्त की थी । उस वक़्त वहां का राजा दाहिर था और जब हज्जाज बिन युसूफ ने दाहिर से कैदियों की रिहाई और मुआवजे के लिए कहा तो उसने साफ़ तौर पर इनकार कर दिया कि उनके ऊपर उनका कोई नियंत्रण नहीं है और ना ही वह उनके क़ैद में हैं, उसके बाद अल-हज्जाज ने 711 में सिंध के खिलाफ आकर्मण करने और क़ैदिओं को छुड़ाने के लिए मुहम्मद बिन कासिम को सिंध भेजा |
मुहम्मद बिन कासिम को भेजे गए एक पत्र में अल-हज्जाज ने सैन्य रणनीति को कुछ इसतरह से रेखांकित किया था:
"मेरा निर्णय यह है की एहल-ए-हर्ब (लड़ाकों) से संबंधित सभी को पकड़ें; बंधकों के रूप में उनके बेटों और बेटियों को गिरफ्तार करें और उन्हें कैद करें। जो भी हमारे खिलाफ नहीं लड़ता है उन्हें अमन यानि (सुरक्षा) प्रदान करें" |
मुहम्मद बिन कासिम की सफलता को ख़ास तौर से सिंध के उस समय के दाहिर राजा को वहां रह रहे बौद्ध लोगों पर कठोर रूप से शासन करने वाले एक अलोकप्रिय हिंदू राजा के रूप में वर्णित किया गया है, जिन्होंने राय राजवंश के अलोर के चाच में उनके शाशन काल को झेल रहे थे । इसका परिणाम यह हुआ के वहां के बौद्धों द्वारा प्रदान किए जाने वाले समर्थन और स्थानीय विद्रोहियों ने मुहम्मद बिन क़ासिम का साथ दिया और मेड से अपने घुड़सवार-भारी बल में मूल्यवान पैदल सेना के रूप में सेवा दी और जिसके लिए राजा दाहिर पूर्ण रूप से जिम्मेदार ठहरते हैं ।
जब मुहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर आक्रमण किया तो उन्हें पहले वहां के जाटों का सामना करना पड़ा और सभी हिंदुओं को विदेशी आक्रमणकारियों ने जाट ही कहा। अलोर के चाच ने जाट और लोहना वासियों को अपमानित किया था । उन्हें शाल के लकड़ी के तलवार रखने, मखमल या रेशम के पतले अंडरगर्म पहनने के लिए मजबूर किया जाता रहा था; उन्हें कहा गया था की वह अपने घोड़ों पर कोई सैडल ना डालें | उनका दूसरा काम जासूसों के लिए गाइड का काम करना और राज्य रसोई के लिए लकड़ी लाने का काम था। कासिम ने इन नियमों को बनाए रखा, यह घोषणा करते हुए कि जाट फारस और पहाड़ों के इलाक़ाई जैसे दीखते हैं । उन्होंने क़ासिम के आधीन घसुल, सगार और बैट द्वीप को अरब शाशन में शामिल कर लिया ।
इस युद्ध में जिन चीज़ों ने मुख्य भूमिका निभाई थी वह यह थे :
- सशक्त सैन्य उपकरण; जैसे के घेराबंदी करने में कुशलता और मंगोल धनुष।
- मुहम्मद बिन क़ासिम का अनुशासन और बेहतरीन जंगी नेतृत्व।
- मुस्लिम सैनिकों के बीच दाहिर के द्वारा क़ैद की गयी औरतों को छुड़ाने के लिए एक मनोबल बूस्टर के रूप में जिहाद की अवधारणा।
- मुस्लिम सफलता की भविष्यवाणी के रूप में व्यपार जगत को अधिक बढ़ावा देना
- वहां रह रहे सामनियों को अपने साथ मिलाना क्योंकि अधिकांश जनसंख्या बौद्ध थी और वह उस समय अपने हिंदू राजा दाहिर के आधीन थे और जो अपने शासकों से असंतुष्ट थे।
- लोहाना जाट की विकलांगता के तहत उनसे ज़बरदस्ती श्रम करवाना |
- राजा दाहिर के प्रमुखों और महलों के बीच रह रहे लोगों द्वारा साथ छोड़ देने और षड्यंत्र रचने के कारन से हार।
अरब शासनकाल में धार्मिक नीति के बारे में विवादित विचार हैं। कुछ इतिहासकारों के अनुसार, कोई सामूहिक धर्मांतरण नहीं किया गया था और ना ही कई सारे मंदिरों का विनाश हुआ था जैसे कि मुल्तान के सूर्य मंदिर को कुछ भी हानि नहीं पहुंचाई गयी थी । लेन-पोल लिखते हैं कि, "नियमित रूप से मुस्लिम सरकार एक सहिष्णु और आर्थिक थी |
कुछ लोग ने जो इस्लाम धर्म अपनाये थे वह अनिवार्य जकात का भुगतान करने के बदले में उन्होंने धर्मांतरण किया था और उन्हें जिज़्या टैक्स से छूट दी गई थी। हिंदुओं और बौद्धों को ढीमी (संरक्षित लोगों) की स्थिति दी गई थी |
मुल्तान के पतन ने विजेता के चरणों में सिंधु घाटी रखी। स्वागत के प्रतीक के रूप में सिंधु के जनजातियों ने 'ढोल, नगाड़े और नृत्य कर मुस्लमान अकर्मणकारियों का सुवागत किया।' हिंदू शासकों ने उनका भारी दमन किया था, जाट और मेड और अन्य जनजाति आक्रमणकारियों के पक्ष में थीं। जीत के इस काम में जैसा कि अक्सर भारत में होता आया था, ठीक उसी प्रकार वहां के निवासियों के द्वारा सहायता प्राप्त की गई थी, और जाति और पंथ के दमन ने मुस्लिमों की मदद करने में अहम् भूमिका निभायी थी। जीत के बाद क़ासिम ने इस्लामी परंपरागत जज़ीए कर यानि ज़कात कर लगाया था जो के वहां के निवासियों के लिए नया था, अच्छे आचरण के लिए बंधक बनाये गए लोगों को छोड़ दिया गया था, और उन लोगों लोगों की भूमि उनके हवाले कर दी गयी थी । उन्होंने उनके सभी मंदिरों को धवस्त नहीं किया था सिवाए उनके जिसमें नंगी और कामुक दृश्य बने हुए थे सिर्फ उनको ही तोडा गया था | उन्होंने घोषणा की के, 'ईसाईयों के चर्चों, यहूदियों के सभाओं और मगियंस की वेदियां को हाथ नहीं लगाई जाएँगी ।'
सन्दर्भ : 'स्टेनली लेन-पोल की पुस्तक "मध्यकालीन भारत मोहम्मडन नियम, 712-1764, जीपी पुट्टनाम एवं संस । न्यूयॉर्क, 1970से ली गयी है |
Stanley Lane-Poole, Medieval India under Mohammedan Rule, 712-1764, G.P. Putnam's Sons. New York, 1970. p. 9-10
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