भारत में महिलाओं के प्रति यौन शोषण की बढ़ती घटनायें दुन्या का सबसे बड़ा मानवाधिकार का उल्लंघन है | दीपा नारायण | Increasingly Incidents Of Sexual Abuse In India Are A Violation Of The Largest Human Rights of the world. Deepa Narayan
भारत में महिलाओं के प्रति यौन शोषण की बढ़ती घटनायें दुन्या का सबसे बड़ा मानवाधिकार का उल्लंघन है | दीपा नारायण | Increasingly Incidents Of Sexual Abuse In India Are A Violation Of The Largest Human Rights of the world. Deepa Narayan
प्रति दिन की दुखद बलात्कार के ख़बरों ने देश को हिला कर रख दिया है । अकेले भारतवर्ष में 650 मिलियन भारतीय महिलाओं और लड़कियों के रोजमर्रा की इस भयानक पीड़ा को समाज द्वारा अनदेखा कर दिया जाता है।
भारत में लड़कियों और महिलाओं को अपने आत्मसम्मान और इज़्ज़त की हिफाज़त के लिए हर दिन समाज के उन घिनाओने लोगों का सामना करना पड़ता है जो हमारे इर्द गिर्द ही मौजूद होते हैं । यह लोग किसी बहरी दुन्या से नहीं आते और यह हमारे ही समाज की गन्दगी है | बता दें की कुछ हफ़्तों पहले कई पुरुषों द्वारा 8 साल की एक मासूम बच्ची आशिफ़ा को कुछ हैवानो द्वारा अगवा कर पास के मंदिर में भयानक स्थिति में रक्खा गया था जहाँ उस बच्ची के साथ योजनाबद्ध तरीके से बलात्कार, जिसमें एक पुलिसकर्मी भी शामिल था और जिसने बाद में सबूतों को नष्ट करने के लिए बच्ची के पहने हुए कपड़े को धोया, विशेष रूप से भयानक था । असिफा के बलात्कार ने पूरे देश को क्रोधित कर दिया । 2013 में बलात्कार कानूनों को मजबूत करने के बाद भी भारत में यौन शोषण में किसी तरह की कमी नहीं आयी बल्कि यह पहले से ज़्यादा बढ़ी है । राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो के अनुसार, 2016 में घरेलु लड़कियों के बलात्कार में पिछले वर्ष की तुलना में 82% की वृद्धि हुई। सोचने वाली बात यह है की सभी बलात्कार के मामलों में, 95% बलात्कारी अजनबी नहीं बल्कि उनके परिवार, दोस्तों और पड़ोसियों में से ही थे |
महिलाओं की सांस्कृतिक रूप से स्वीकृत गिरावट इतनी ज़्यादा है कि भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने बेटी बचाओ नामक एक राष्ट्रीय कार्यक्रम शुरू किया। सच कहूं तोह भारत में व्यापक रूप से पृथ्वी पर सबसे बड़े मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाया जा सकता है| यहाँ की भारतीय महिलाओं में 650 मिलियन लड़कियों और महिलाओं की विशाल रेश्यो का लगातार गिरावट देखा जा सकता है । इसमें ज़्यादा तर मध्यम वर्ग के लोग शामिल हैं।
सड़कों, बम और युद्ध में टैंकों की तुलना में भारत की महिलाओं को किसी भी तरीकों से कम पीड़ित नहीं किया जाता । औरत महज़ एक चीज़ का नाम है जिसे मर्द जब चाहे खेले और तोड़ दे यह हमारे यहाँ होता है | औरतों का उत्पीड़न निर्दोष रूप से निजी जीवन में, परिवारों के भीतर होता है, लड़कियों को अपने घरों में बंद कर दिया जाता है। उन्हें समाज से दूर रक्खा जाता है | यह रोजमर्रा की हिंसा ऐसी संस्कृति का उत्पाद है जो पुरुषों को सारी शक्ति प्रदान करती है, और औरतों को इस दुन्या में आने से पहले अस्तित्व में लाना नहीं चाहती है। यह सांखियाँ यहां के अमीर परिवारों में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। भारत अपनी महिलाओं को धीरे-धीरे मारता चला जा रहा है । महिलाओं के प्रति आये दिन जिस तरह की क्रूरता दिखने को मिल रही है उस से यहाँ की महिलाओं के दिलों में हमेशा एक खौफ झलकता दिखाई देता है |
अपने घरों में होने वाले उत्पीड़न से अक्सर इनकार किया जाता है जो की लड़कियों के लिए घातक है। हमने जब कुछ लड़कियों से साक्षात्कार किया तोह लगभग हर महिला ने यौन उत्पीड़न के कुछ रूपों का अनुभव का ज़िक्र हमसे किया । भारतीय सरकार के सर्वेक्षण से पता चलता है कि देश में 42% लड़कियों का यौन शोषण उनके परिवार, शिक्षा संस्थानों में किया जाता है जो अक्सर छुपाया जाता है उसके बावजूद यह आंकड़े हमें मिले हैं ।
अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाना हमारा बुनियादी मानव अधिकार है। आवाज उठाने के लिए, बोलने के लिए, अपनी पहचान बताने के लिए यह ज़रूरी है। लेकिन अफ़सोस के लड़कियों को अक्सर माता पिता और परिवार द्वारा चुप रहने की और ज़्यादा न बोलने की शिक्षा दी जाती है । उन्हें चुप रहने के लिए कहा जाता है, धीरे-धीरे बोलने के लिए कहा जाता है, उन्हें किसी मामले में अपनी राय देने का हक़ नहीं दिया जाता, कोई तर्क नहीं, कोई संघर्ष नहीं करना है यह सिखाया जाता है ।
जिन महिलाओं की आत्म भावनाएं ज़िंदा हैं, उनको अपने पतियों पर निर्भर रहने के लिए कहा जाता है, जो केवल भय और हिंसा पैदा करती है । 50% से अधिक भारतीय पुरुष और महिलाएं अब भी यह मानते हैं कि कभी-कभी महिलाओं को दण्डित करने के लिए मारना पीटना ज़रूरी है, हम ऐसे देश में रहते हैं जहाँ औरतें गाय बैल के जैसी समझी जाती हैं |
• दीपा नारायण एक सामाजिक वैज्ञानिक और औरतों की चुप्पी के खिलाफ काम करने वाली लेखक हैं: उनका कहना है की भारत की महिलाओं में खामोशी को तोड़ना ज़रूरी है |
टिप्पणियाँ