जनता के लिए पर्याप्त नौकरियां नहीं, निजी निवेश गायब: दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के साथ ऐसा क्यों? Job Crisis In Indian Market, No Private Investment: What's Wrong With Indian Economy?
जनता के लिए पर्याप्त नौकरियां नहीं, निजी निवेश गायब: दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के साथ ऐसा क्यों? Job Crisis In Indian Market, No Private Investment: What's Wrong With Indian Economy?
इस सप्ताह की शुरुआत में जारी रेटिंग एजेंसी केयर की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि पिछले कुछ सालों से भारत का रोजगार परिदृश्य अच्छा नहीं है। रेटिंग एजेंसी का कहना है कि कॉरपोरेट इंडिया में नौकरी की वृद्धि वित्तीय वर्ष 2018 में 3.8 प्रतिशत है जबकि पिछले वित्त वर्ष की तुलना में यह दर 4.2 प्रतिशत थी और इस मामले में समस्या छोटी कंपनियों के साथ सबसे ज़्यादा गंभीर है।
1,600 से अधिक छोटी बड़ी कंपनियों के एक विश्लेषण के आधार पर रिपोर्ट में बताया गया है कि 500 करोड़ रुपये से कम की शुद्ध बिक्री वाली छोटी कंपनियों ने रोजगार में भारी गिरावट देखि है, जबकि 500 करोड़ रुपये से अधिक बिक्री वाली बड़ी कंपनियों ने 2017-18 में सकारात्मक रोजगार वृद्धि दर्ज की है।
वैश्विक और घरेलू जीडीपी विकास दर में भारत ऊँची चोटी पर आता है, जो भारत को विश्व विकास चार्ट के शीर्ष पर रखता है और हम यह जानकार गदगद हो जाते हैं कि एक बार फिर भारत विकास दर पर चीन को पीछे छोड़ सकता है। लेकिन तथ्य इसके ठीक विपरीत है। बता दें की यह जीडीपी के आंकड़े आम आदमी को आसानी से समझ ही नहीं आते हैं । मध्यम और छोटी कमपनियाँ बड़ी कंपनियों के मुक़ाबले ज़्यादा नौकरियां मुहैय्या करवाती हैं और इस समय जिनकी हालत बीमार है या लगभग ख़त्म होने के कगार पर हैं ऐसे में यह जीडीपी के आंकड़े आम जनता के लिए मायने नहीं रखते जब उनके पास पर्याप्त नौकरियां ही नहीं हैं। केयर सर्वेक्षण में कहा गया है की स्थिति काफी बदतर है क्योंकि इस समय छोटी कंपनियों में नौकरियां पर्याप्त गति से उत्पन्न ही नहीं हो रही हैं। 1.3 अरब लोगों में इस समय खौफ का माहौल है क्योंकि राजनितिक हलचल ज़ोरों पर है और अर्थव्यवस्था खतरे में । केयर के आंकड़े भारत्या अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी विकास के डर की पुष्टि करते हैं, जो नरेंद्र मोदी सरकार के लिए एक बड़ी गंभीर चुनौती है पर सत्ताधारी भाजपा सरकार इनसब से परे धार्मिक मामलों को हवा देकर आने वाले चुनाव में गर्माहट पैदा करने की फ़िराक में जुटी हुई है और हिन्दू पोलराइजेशन करके राजनीतिक रोटी सेंकने में अभी से लग गई है।
नौकरी संख्याओं में लगातार गिरावट से कई प्रश्नों के जवाब सरकार को आगे चल कर देने होंगे अगर जनता सच में सवाल पूछे तोह। ज़ोरशोर से किये गए प्रचार "स्टार्ट-अप इंडिया" के साथ क्या हुआ? कौशल भारत अभियान जो नौकरी पैदा करने की वकालत कर रहा था उसका किया हुआ? विदेशी निवेशकों को भारत्या आर्थिक गति को पुनर्जीवित करने के लिए जो परियोजना का प्रचार हुआ था उसका किया हुआ? इनसब मुद्दों को छोड़ कर मोदी धार्मिक धुर्वीकरण को हवा देकर फिर से सत्ता क़ब्ज़ाने के फ़िराक में लग गए और आधे से ज़्यादा हिन्दू समुदाय मोदी महान के सुर में सुर मिलाकर मधुर गीत गा रहे है जिनका खम्याज़ाह खुद जनता को ही आगे चल कर भुगतना पड़ सकता है।
इतना ही नहीं; निजी कंपनियां भी इस नौकरी में गिरावट को देख रहा है । हाल ही में, अर्थव्यवस्था निगरानी एजेंसी, सीएमआईई ने कहा है कि निजी क्षेत्र के निवेश लगातार कम होते चले जा रहे है । इसका आंकड़ा बताता है कि भारतीय कंपनियों ने सितंबर को आखरी तिमाही में 1.49 लाख करोड़ रुपये की नई परियोजनाओं की घोषणा की, जो पिछली तिमाही में 41 प्रतिशत थी, और पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 12 प्रतिशत कम है।
यदि कोई संख्याओं पर गहराई से देखता है, तो समस्या मुख्य रूप से निजी क्षेत्र में है, जो बाजार में अधिक पैसा लगाने से इनकार कर रही है। यह बेरोजगारी की अहम् जड़ है क्योंकि जब तक अर्थव्यवस्था में पैसा नहीं लगाया जाता नई नौकरियां पैदा नहीं हो सकती। तथ्य यह है कि सरकार द्वारा कोई नई परियोजना नहीं बन रही हैं तोह फिर निजी कंपनियां आखिर किस पर अपना पैसा लगाए और वह सरकार के बड़बोलपन से आशा भी नहीं रखते ।
याद रखें, भारत की जीडीपी 7-7.5 प्रतिशत पर बढ़ने का अनुमान लगा रहा है, जिससे यह दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बन सकता है। लेकिन वहीँ ज़मीनी सतह अच्छी नहीं है रुपया में लगातार गिरावट (इस बिंदु पर 74 रुपया प्रति डॉलर का व्यापार), अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि (भारत घरेलू मांग का 80 प्रतिशत आयात करता है), एक मजबूत वैश्विक ब्याज दर पर्यावरण (जिसका अर्थ है पूंजीगत पलायन का खतरा)।
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