अमृतसर ट्रेन दुर्घटना: श्मशान में इतने सारे लाशों के टुकड़े पहले कभी नहीं देखा था । Amritsar Train Accident; Cremation Ground Was Full Of Bodies Never Seen Before.
अमृतसर ट्रेन दुर्घटना: श्मशान में इतने सारे लाशों के टुकड़े पहले कभी नहीं देखा था । Amritsar Train Accident; Cremation Ground Was Full Of Bodies Never Seen Before.
श्मशान ग्राउंड के मैनेजर धर्मेंद्र ने बताया कि 12 मजदूर, परिवार वालों के साथ मिलकर श्मशान में उनकी मदद कर रहे थे। उन्होंने कहा, "मंदिर ट्रस्ट ने इस दुर्घटना पीड़ितों के परिवारों से कुछ भी पैसे चार्ज ना करने का फैसला किया है।"
मरने वालों के अंतिम संस्कार के दौरान शरीर के टुकड़ों और दुख से पीड़ित परिवार - अमृतसर के शिवपुरी दुर्गियाना श्मशान भूमि ने इस से पहले कभी ऐसा दिल को दहला देने वाला नज़ारा नहीं देखा था। ट्रेन के कुचलने के कारन जौरा फाटक रेलवे क्रॉसिंग पर 60 से अधिक लोगों की मौत हो गई, कुल 31 पीड़ित परिवार के आंसू थमते दिखाई नहीं दे रहे थे जिन परिवार वालों ने अपनों का यहाँ अंतिम संस्कार किए।
शमशान के प्रबंधक धर्मेंद्र ने कहा, "यह पहली बार है कि इस श्मशान के मैदान में इतने सारे शरीर एक समय में जल रहे हैं।"
गौरव डोगरा चुपचाप हाथ बांधे खड़ा था, उसकी आँखें सामने जल रही चार लाशों पर टिकी हुई थीं । वह आहिस्ता से कहते हैं । "वह मेरी बहन, उसका पति, और उनके दो सुंदर बच्चे हैं। हमारा पूरा परिवार इस हादसे में समाप्त हो गया। हमारे बच्चे 'क्रिमेशन ग्राउंड को कभी भी नहीं देखे थे पर आज उनकी लाशें यहाँ हैं, इतनी सारी लाशों के बीच । उन्होंने जाने से पहले मुझसे कहा था की मामू हम जाएंगे रवां दहन देखेंगे और बस कुछ तस्वीरें रावण के पुतली के साथ क्लिक करके वापस लौट आएंगे । वह बस इतना ही चाहते थे, "डोगरा ने कहा, फिर उनकी आँखों से आँसू जारी हो गए।
डोगरा ने अपनी बहन पूजा उर्फ अमिषा डोगरा (38), उनके पति अमन डोगरा (40), और दोनों बच्चों नकुल (13), और काशीश (9) के लाशों को अग्नि दी।
"शरीर इतनी बुरी तरह उलझ गए थे कि कल रात उन्हें पहचानना मुश्किल हो गया था। हम उन्हें आज सुबह ही पहचान सके हैं, "डोगरा ने कहा। उनके छोटे भाई राहुल डोगरा, जो अपनी बहन से मिलने वाले आखिरी शख्स थे, ने कहा, "मैं बच्चों को शुभकामनाएं देने के लिए उनके घर गया था। उसने अपने पति से मेरे लिए कुछ स्प्रिंग रोल और जलेबी लाने के लिए कहा था । मैं अभी भी मेरे आस-पास उछल कूद कर रहे बच्चों को सुन सकता हूं, मामु, मामु बुला रहे हों ... हमारे माता-पिता कुछ समय पहले मर गए थे। अब हमारी बहन और उसका परिवार भी चला गया । अब हमारे पास इस दुनिया में कुछ भी नहीं बचा है। "
शनिवार को अमृतसर में कुल 38 लाशें जलाई गईं। उन लाशों में पांच लाशें बच्चों की थीं जिनकी उम्र 3 से 13 साल के बीच थी । बाक़ी चार लाशें परिवार के इच्छा के अनुसार उत्तर प्रदेश ले जाया गया। सिविल अस्पताल और गुरु नानक देव अस्पताल के डॉक्टरों ने शुक्रवार शाम को ऑटोप्सी की थी जिसके बाद परिवार वालों ने प्राप्त 59 लाशों को पहचान लिया।
सिविल सर्जन, अमृतसर के डॉ हरदीप सिंह घई ने कहा कि सिविल अस्पताल के सभी 39 लाशों की पहचान की गई है, और दो शव उनके परिवार द्वारा पहचान की गई थी । गुरु नानक देव अस्पताल में, 20 लाशों में से 19 की पहचान की गई और शव को परिवारों को सौंप दिया गया।
सिविल अस्पताल में रात के दौरान ऑटोप्सी आयोजित की गई। माता-पिता ने अपने बच्चों के शरीर के शव को हासिल करने के लिए पूरी रात ऑटोप्सी कमरे के बाहर इंतजार किया।
"आमतौर पर, एक शव की ऑटोप्सी में एक दिन लगता है। सिविल अस्पताल के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ संदीप अग्रवाल ने कहा, लेकिन इस तरह के संकट में, हम रात भर जाग कर लाशों की ऑटोप्सीज़ करते रहे।
"इससे पहले कभी मैंने इन दृश्यों को देखा नहीं था। आखरी समय पर लाये गए चार बच्चों को मृत घोषित कर दिया गया था और कई अन्य लोगों को बचाने की कोशिश की। जिन लोगों को स्टैम्पड के कारण आघात की चोटें थीं उन्हें बचाया जा सकता था, लेकिन हम उन लोगों को बचा नहीं सके जो ट्रेन की चपेट में आ गए थे । उनमें से ज्यादातर लोगों को पेट, चेहरे और खोपड़ी में गंभीर चोट लगी थी। डॉ। अग्रवाल ने शनिवार के शुरुआती घंटों में इंडियन एक्सप्रेस अखबार को बताया ।
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