भारतीय फिल्मों द्वारा मुस्लिम शासकों के इतिहास को तोड़ मरोड़ कर दर्शाना कट्टरपंथी मानसिकता का हिस्सा | Indian Movies Distorting Indian History Portraying Muslim Kings Like Beast |

भारतीय फिल्मों द्वारा मुस्लिम शासकों के इतिहास को तोड़ मरोड़ कर दर्शाना कट्टरपंथी मानसिकता का हिस्सा | Indian Movies Distorting Indian History Portraying Muslim Kings Like Beast | 


भारतीय फिल्मों में एक लंबे समय से मुस्लिम शासकों से अन्याय किया जाता रहा है और उनको नकारात्मक और उग्र दिखाने में चित्रित किया गया, ख़ास कर पिछले एक दशक से जबकि प्रतिद्वंद्वी हिंदू समुदाय से संबंधित उनके राजाओं और महाराजाओं को खूबसूरत, बेहतरीन लिबास, शालीनता दिखाने और मुस्लिम शासकों पर अपनी गरजदार संवाद में पेश किया जाता है जो की पूरी तरह से तारीख के पन्नो से छेड़छाड़ और तोड़ मरोड़ कर दर्शकों के सामने परोसा गया है ताकि हालिया नसल हकीकत को छोड़ कर फिल्मों द्वारा की गयी चित्रण को सच समझने लगें जैसा की आज के हिंदूवादी कट्टरपंथी नेताओं ने मध्यप्रदेश और राजस्थान में किया जिसमें महाराणा प्रताप को विजय दिखाया गया और अकबर बादशाह को पराजय कर दिया गया | हालिया फिल्मों में जहाँ अलाउद्दीन खिलजी को जानवर और सेक्सुअल एडिक्ट के रूप में दिखाया गया तोह वहीँ उसके प्रतिद्वंद्वी हिंदू राजा को हीरो के रूप में दर्शाया गया | पूरी तरह से अन्याय और ऐतिहासिक तथ्यों को विकृत कर दिया गया। इस तरह की प्रैक्टिस मुस्लिम छवि को नुकसान पहुंचाने और खराब करने की कोशिश की जा रही है और हम अभी भी बिना किसी सवाल उठाए इन फिल्मों को देख रहे हैं। भारत के मुसलमानों को इस अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज उठानी चाहिए क्योंकि हर इतिहासकार जानता है कि भारत के लिए मुस्लिम शासक ने क्या किया है। निर्माण कार्यों में ताजमहल से लेकर जीटी रोड और लाल किला से लेकर फतेहपुर सिकरी और ऐसी कई ऐतिहासिक इमारतें मुस्लिम राजाओं की ही देन है और जिनसे टूरिज्म द्वारा अच्छे खासे पैसे आजकी सरकार के रेवेनुए का एक हिस्सा हैं और इतना ही नहीं बल्कि इनसे ना जाने कितने ही उन परिवारों का पेट पलता है जो इसके इर्द गिर्द बसे हुए हैं बिना किसी का धर्म देखे हुए।

कुछ महीने पहले टिपू सुल्तान जिन्होंने कभी अंग्रेज़ों के सामने अपना सर नहीं झुकाया और लड़ते लड़ते अपनी शहादत पेश करदी उनको भी यह हिंदूवादी मानसिकता के लोगों ने नहीं छोड़ा | एक तस्वीर इंटरनेट पर वायरल की गई जिसमें टीपू सुल्तान जैसी अज़ीम शख्सियत को बेहद काले रंग में और अजीब ओ ग़रीब से लिबास में दिखाया गया। असल में यह टीपू सुल्तान की तस्वीर नहीं थी क्योंकि कैमरे का आविष्कार उनके जीवनकाल के दौरान नहीं हुआ था, तस्वीर मुस्लिमों द्वारा साझा नहीं की गई थी, बल्कि राइट विंग के हिन्दू कट्टरपंथियों द्वारा वायरल की गई थी । आश्चर्य की बात है, है ना? तस्वीर उनके द्वारा व्यापक रूप से साझा की गई वजह यह है कि तस्वीर में व्यक्ति काला है और अप्रिय दिखता है। मतलब यह कट्टरपंथियों का समूह यह कहना चाहता था कि यह मुस्लिम योद्धा बहुत बदसूरत था। 

अलाउद्दीन खिलजी का चित्रण पर भी सवाल उठाया जा सकता है। अलाउद्दीन खिलजी को फिल्म पद्मावती में केवल बर्बर, जानवर के रूप में चित्रित नहीं किया गया है, बल्कि उन्हें फिल्म में बदसूरत चेहरे के साथ बदसूरत दिखने के लिए भी बनाया गया है, उनके चेहरे पर निशान, लंबे बाल इस की गवाह हैं जिनसे कोई भी इतिहासकार इत्तेफ़ाक़ नहीं रखता तोह फिर आखिर क्यों ? सवाल यही है की ऐसा दोहरा मापदंड मुसलमानो के साथ क्यों किया जाता है | इसमें कई ऐसी हस्तियां शामिल हैं जो समाज का हिस्सा तोह हैं और खुद को सेक्युलर भी बताते हैं मगर दिल है फिर भी कट्टरपंथी वाला; ताज्जुब यह है की इसी फ़िल्मी जगत में मुसलमानो का बड़ा हिस्सा है मगर उन्होंने कभी भी इनसब पर सवाल नहीं उठाया बल्कि हमेशा इन जैसे कट्टरपंथी ताक़तों का या तो साथ दिया है या फिर खुद ही ऐसे करैक्टर को फिल्मों में अपनाया है। दोनों मामलों में इन दो मुस्लिम शासकों को काला और बदसूरत दिखाया गया यह साबित करता है कि कैसे नस्लवादी हैं यह राइट विंग के लोग जबकि हकीकत में यह और इनके राजा जिन्हें यह पेश करते हैं खुद काले थे और शराब और अइय्याशी में अपने प्रजा के लिए लोकप्रिय हरगिज़ नहीं थे जिसका जीता जागता साबुत राजा दाहिर था और जिस से उसकी खुद की प्रजा बेहद दुखी थी | आप इसके बारे में मेरे इसी ब्लॉग में राजा दाहिर और मुहम्मद बिन क़ासिम के रोल और भारत पर हमले की योजना को पढ़ सकते हैं जो की आपको जानना भी चाहिए और लोगों को शेयर भी करना चाहिए | नीचे के लिंक पर क्लिक करके पढ़ें की वह किया हालात थे जिसने मुहम्मद बिन क़ासिम को भारत पर हमला करने के लिए आमादा किया था |

मुहम्मद बिन क़ासिम का भारत पर हमले का कारन और राजा दाहिर की अलोकप्रियता

 मैं उन कट्टरपंथी ताक़तों को यही कहूंगा के आप कोयले के तरग काले हो सकते हैं लेकिन साथ ही यह भी बता दूँ की आप का दिल उस कोयले से भी ज़्यादा काला है | पद्मावती फिल्म में अलाउद्दीन खिलजी का चित्रण उनके तारीख से बिल्कुल ही अलग है। कट्टरपंथियों का इरादा बिलकुल स्पष्ट है, वे अपने "विरोधियों" को इतना राक्षसी बनाकर दिखाना चाहता है कि वे अपने "दुश्मनों" के इतिहास को ना केवल विकृत करें बल्कि वे कैसे दीखते थे उसको भी विकृत करते हैं यह उनकी विकृत मानसिकता का साबुत है । और यह केवल मौजूदा समय में ही नहीं हो रहा है बल्कि वे तब से ऐसा कर रहे हैं जब से उनके वेदों को लिखा गया था। हां, आपने सही पढ़ा है। ज़ोरोस्ट्रियन भगवान को अहुरा कहा जाता है, जबकि वेदों में शब्द विकृत हो जाता है क्योंकि असुर और असुरस (पारसी) को वेदों में राक्षसों के रूप में चित्रित किया जाता है। जबकि हम जानते हैं कि पारसी राक्षसों की तरह तोह हरगिज़ नहीं दीखते मतलब साफ़ है की जिन्हें यह पसंद नहीं करते उनके चरित्र का और वेशभूषा का भी हनन करते हैं। अरब में रहने वाले लोगों को मालेकचास कहा जाता था और सफेद लोग (गोरी चमड़ी वेले अँगरेज़) हिंदू ग्रंथों में यवन के रूप में वर्णित हैं। यह मैं नहीं कह रहा हूँ बल्कि खुद आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपनी किताबों में लिखा है |

"आर्यवर्त के अलावा अन्य देशों को दस्युस और मलेच्छा देश कहा जाता था । MANU 10:45, 2:23। उत्तर-पूर्व, उत्तर, उत्तर-पश्चिम में रहने वाले लोगों को राक्षस कहा जाता था। आप अभी भी देख सकते हैं कि राक्षसों का विवरण आज के उपद्रवों की बदसूरत उपस्थिति के साथ पेश किया गया है। "सत्यन प्रकाश, दयानंद सरस्वती, च 8, पृष्ठ 266, त्रि। चरणजीव  भारद्वाजा"

गोया कहने का तातपर्य यह है की यह कौन लोग हैं जो आपके पूर्वजों के इतिहास को तोड़ने मरोड़ने में लगे हुए हैं और वह भी इतने बेबाकी से के कोई भी इसके खिलाफ आवाज़ नहीं उठाता | जबकि हम बात अगर पद्मावती की ही करें तोह उसके लिए हिन्दू चरमपंथयों का पूरा गुरोह किस तरह से सड़कों पर आ गया था | किस तरह उन्होंने संजय लीला भंसाली को आड़े हाथों लिया था और फिर किस तरह उस फिल्म में तक़रीबन 200 से ज़्यादा कट लगाए गए थे सिर्फ इसलिए के हिन्दू और राजपूती भावना आहत ना हो जबकि फिल्म में ऐसा कुछ नहीं था ना एडिटिंग से पहले और ना ही बाद में फिर भी उनकी भावना का ख्याल रक्खा गया था तोह किया मुस्लिम समाज सोया पड़ा है ? किया उन्हें अपने इतिहास के इसतरह से तोड़ने मरोड़ने पर कुछ भी नहीं लगता? किया मुस्लमान इतना डरा हुआ है की वह अपनी बात को लेकर सड़कों पर नहीं निकलता | वजह मुसलमानो में लीडरशिप की कमी है और शायद उन्हें इन बातों से फरक ही नहीं पड़ता | इसके साथ ही मैं बात यहीं खत्म करूँगा पर आप सोचियेगा ज़रूर क्योंकि आपकी खामोशी आपके लिए आगे चल कर बड़ी मुसीबतें खड़ा करने वाला है जो आप इस समय देख ही रहे हैं | हो सके तोह इस आर्टिकल को शेयर ज़रूर कीजिए यह आप पर है मेरी बस विनती है |

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