रुपया में इतिहासिक गिरावट | डॉलर के मुक़ाबले रुपया 72.67 के ऊपर पहुंचा | Indian Rupee Falling Again At 72.67 Against Dollar.
रुपया में इतिहासिक गिरावट | डॉलर के मुक़ाबले रुपया 72.67 के ऊपर पहुंचा | Indian Rupee Falling Again At 72.67 Against Dollar.
Why Indian Rupee Is Falling Regularly Against American Dollar?
अपनी गिरावट जारी रखते हुए, भारतीय रुपया आज सोमवार को 72.35 के सबसे निचले स्तर पर जा पहुंचा, जो पिछले दिन अमेरिकी डॉलर के मुक़ाबले 71.73 के स्तर पर कारोबार कर रहा था और फिर दूसरे ही दिन उसमें मज़ीद 62 पैसे की गिरावट दर्ज की गई और 72.35 पर जा पहुंची।
आज लगभग 10.30 बजे, भारतीय रुपया हरे रंग की सेंसेक्स के तहत 72.32 पर कारोबार करता हुआ देखा गया । यह 72.18 प्रति डॉलर पर खोला गया था।
संयुक्त अरब अमीरात दिरहम के मुक़ाबले, एक्सई डॉट कॉम के मुताबिक रुपया 9:55 बजे (यूएई समय) 19.72 पर कारोबार कर रहा था।
हाल के दिनों में भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुक़ाबले लगातार गिरता चला जा रहा है जिसने विश्व बाजार को दबाव की स्थिति में खड़ा कर दिया है। एशियाई देशों में भारतीय मुद्रा को सबसे खराब स्तिथि में खड़ा कर दिया है और जिसमें इस साल कुल 12 प्रतिशत की कमी आई है।
रुपये के नवीनतम हालात ने भारत में एक नई बहस की शुरुआत करदी है। रिजर्व बैंक की नित्यों में मुद्रा के लिए एक विशिष्ट स्तर को लक्षित करने के बजाय अस्थिरता को कम करना होता है। देखना दिलचस्प यह होगा की किया आरबीआई रुपये को मजबूत करने के लिए हस्तक्षेप करेगी? यदि हां, तो आरबीआई को क्या करना चाहिए और इसका प्रभाव आने वाले समय में क्या होगा?
कई ऐसे कारक है जो अधिकारियों को कार्य करने के लिए लगातार दबाव बना रहे हैं | भारतीय रुपया राष्ट्रीय गौरव और राजनीतिक पार्टियों के दरमियान कड़वाहट का एक साधन बन गया है। अब हालात ऐसे हो गए है की सरकार और आरबीआई भयभीत होकर खुद में ही उलझ गए हैं।
रुपया की लगातार गिरती हुई हालत से सबसे बुरा असर अंतर्राष्ट्र्य स्तर पर भारतीय कारोबारियों को हो रहा है और जिसके वजह कर रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया लागर दबाओ में है | बड़े कारोबारियों की शिकायत है की इस मामले में अगर सरकार कुछ नहीं कर पा रही है तोह रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया अपना हस्तक्छेप करे और मुद्रा की गिरती हुई हालत पर फ़ौरन काबू पाए |
एक और दबाव बिंदु तेल की कीमतों का बढ़ना है, जो इस समय मध्यम वर्ग के चिंता और दुख का विषय बना हुआ है। भारत अपनी पेट्रोलियम जरूरतों का लगभग 80 प्रतिशत बाहरी मुल्कों से आयात करता है, एक कारक ईंधन पर देश के अत्यधिक घरेलू करों से जटिल समस्या है | गैसोलीन पर लगभग 100 प्रतिशत और डीजल पर 60 प्रतिशत से 70 प्रतिशत। इसका मतलब है कि जब रुपये में कमी आती है, तो विनिमय दर ईंधन की कीमतों के माध्यम से गुजरती है और नतीजतन, बाकी अर्थव्यवस्था पर दबाओ बढ़ता चला जाता है।
आरबीआई और भारत की सरकार वर्तमान स्तिथि पर शांत दिख रही है । यह एक मजबूत मुद्रा है जिसे दैनिक समाचार, मीडिया दबाव, लॉबिंग और राजनीतिक टौन्टिंग का सामना करना होगा। 2016 में, आरबीआई को मुद्रास्फीति लक्ष्य को पूरा करने और विकास को बनाए रखने के लिए एक नया जनादेश दिया गया था जो की पूरा नहीं हुआ |
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