कामाख्या मंदिर का चौकाने वाला रहस्य : एक रक्तस्राव देवी की दिलचस्प कहानी | Mystery Of Kamakhya Temple and of Bleeding Goddess.

कामाख्या मंदिर का चौकाने वाला रहस्य : एक रक्तस्राव देवी की दिलचस्प कहानी | Mystery Of Kamakhya Temple and of Bleeding Goddess. 

Kamakhya Temple In Assam

हिन्दू धरम में वैसे तोह बहुत सारी दिलचस्प काल्पनिक कहानियां भरी पड़ी हुई हैं जो बड़े श्रद्धा के साथ मनाई और पूजी भी जाती हैं जिसका इतिहास से किसी भी प्रकार का कोई लेना देना नहीं है बस कुछ पंडों द्वारा रची रचाई कहानियां हैं जो वह अपने पेट पालन के लिए बना लिया करते थे और लोग उसे सत्य समझ कर अंधभक्त के तरह यक़ीन भी कर लेते थे | आप उसकी मिसाल आज के दौर में भी अपनी आँखों से देख चुके हैं चाहे वह भगवान् का अवतार कहलवाने वाले बलात्कारी बाबा आसाराम हो या छमकछल्लो देवी की अवतार कहे जाने वाली राधे माँ हो | बलात्कारी बाबा आसाराम को तोह अपने आश्रम की लड़कियों के साथ बलात्कार का जुर्म साबित होने पर आजीवन कारावास हो चूका है और कई सारे दूसरे पंडित और बाबा हर दिन पकडे भी जाते हैं | 

आज हम इसी मुहीम पर अपनी ख़ास रिपोर्ट पेश करने जा रहे हैं और वह है कामाख्या मंदिर का रहस्य | एक देवी की रक्तस्राव की दिलचस्प बानी बनाई कहानी के बारे में जो बड़े श्रद्धा के साथ कामाख्या मंदिर में पूजी जाती हैं और जहाँ भक्तों का एक भीड़ लगा रहता है |



कामाख्या मंदिर एक प्रसिद्ध तीर्थयात्री जगह है जो गुवाहाटी, असम में स्थित है। मंदिर रेलवे स्टेशन से करीब 8 किलोमीटर दूर गुवाहाटी के निलाचल पहाड़ी पर स्थित है। कामाख्या मंदिर तांत्रिक देवी को समर्पित है। कामख्या देवी के अलावा, मंदिर के परिसर में काली के 10 अन्य अवतार भी रक्खे हुए हैं जिसमें धुमावती, मतांगी, बागोला, तारा, कमला, भैरवी, चिन्नामास्ता, भुवनेश्वरी और त्रिपुरा सुंदरी आदि इनके नाम हैं ।

पौराणिक इतिहास:

कामख्या के मंदिर की उत्पत्ति की एक बहुत ही रोचक कहानी है। यह 108 शक्ति पीठों में से एक है। शक्ति पीठों की कहानी इस तरह चली आ रही है की ; एक बार सती अपने पति शिव के साथ अपने पिता की महान यज्ञ में भाग लेने के लिए लड़ पड़ी । भव्य यज्ञ के दौरान, सती के पिता दक्ष ने उसके पति का अपमान किया। सती इस से काफी नाराज हुई और उस शर्मिंदगी में, वह आग में कूद गई और खुद को जला कर मार डाला। जब शिव को इस बात का पता चला कि उसकी प्यारी पत्नी ने आग में कूद कर आत्महत्या कर्ली है, तो वह क्रोध से पागल हो गया। उसने सती के मृत शरीर को अपने कंधों पर रक्खा और विनाश के तांडव करने लगा ।

उसे (शिवा) को शांत करने के लिए, विष्णु भगवान ने उस मृत शरीर को जो शिवा अपने कंधे पर रक्खे हुए था को अपने चक्र से काट दिया। और वह शरीर कुल 108 स्थानों जहां सती के शरीर के हिस्से गिरे उन्हें ही शक्ति पीठ कहा जाता है और वहां मंदिर की स्थापना कर डाली गयी । कामाख्या मंदिर ख़ास इसलिए है क्योंकि कहा जाता है की सती का गर्भ (womb) और योनि (vagina) यहां ही गिरी थी ।

नाम 'कामख्या' कैसे पड़ा:

प्यार का देवता, कामदेव ने उन दिनों एक श्राप के कारण अपनी कुटिलता खो दी थी। उन्होंने शक्ति के गर्भ और जननांगों की मांग की और अभिशाप से मुक्त हो गए। यही वह जगह है जहां 'कामदेव' ने अपनी शक्ति प्राप्त की और इस प्रकार, देवता 'कामख्या' देवी स्थापित हुई और पूजा की जाने लगी ।



कुछ लोग यह भी मानते हैं कि कामाख्या मंदिर एक ऐसा स्थान है जहां शिव और देवी सती के रोमांटिक मिलन हुए थे। चूंकि प्रेम मिलन का संस्कृत शब्द 'काम' है और इसी कारन इस जगह को "कामाख्या" का नाम दिया गया ।

रक्तस्राव वाली देवी:

कामख्या देवी रक्तस्राव देवी के रूप में भी प्रसिद्ध है। शक्ति के उस काल्पनिक गर्भ और योनि को 'गरवग्रि' या मंदिर के अभयारण्य में माना जाता है। कहा जाता है की (जून) के महीने में, देवी की योनि से खून बहती है या मासिक धर्म निकलता है । इस समय, कामख्या के पास ब्रह्मपुत्र नदी लाल हो जाती है। तब मंदिर 3 दिनों तक बंद रहता है और इस दरमियान कामाख्य देवी के भक्त और पंडित मंदिर के अंदर मौजूद देवी को पवित्र जल से धोते हैं अथवा पवित्र करते हैं।

इस बात का कोई वैज्ञानिक सबूत नहीं है कि रक्त वास्तव में नदी को लाल करता भी है या नहीं । कुछ लोग कहते हैं कि पुजारी पानी में "vermilion" (एक प्रकार का केमिकल है जिस से पानी के रंग को लाल किया जाता है) डालते हैं जिस से उसका रंग बदल जाता है । बता दें की कुदरती रूप से, मासिक धर्म एक महिला की जिस्मानी रचनात्मकता स्थति है और बच्चों को जन्म देने की ताक़त की निशानी है। इन सब कारणों से, मंदिर में स्थापित कामख्या की देवी को महिला के भीतर इस 'शक्ति' के रूप में मानते हैं |

हम यहाँ यह बता देना ज़रूरी समझते हैं के हम इनसब बातों पर विश्वास नहीं रखते और यह महज़ मनघडंत कहानियों के सिवाए कुछ भी नहीं है | शुरू से ही यह पंडित और पुजारी अपने पेट भरने और लोगों को बेवक़ूफ़ बनाने तथा डराने के लिए इसतरह की बकवास कहानिओं को जनम देते रहे हैं और समाज को छूत अछूत जैसी बीमारियां में बांटते रहे हैं जो अबतक चली आ रही है और लोग अपने श्रद्धा के अंधे विश्वास में इसे सत्य समझ कर मानते चले आ रहे हैं बिना अपने दिमाग़ का इस्तेमाल किये हुए | भारत एक ऐसा देश है जहाँ लोग धर्म के मामले में अंधे, गूंगे और बहरे हो जाते हैं और सत्य की तलाश नहीं करते |

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टिप्पणियाँ

Nina ने कहा…
कामाख्या मंदिर के शुरुआती वर्षों के बारे में बहुत कम जानकारी है और इसका पहला उल्लेख 9th सदी में तेजपुर में मिले म्लेच्छ वंश के शिलालेखों में मिलता है। जबकि मंदिर लगभग निश्चित रूप से उस समय से पहले अस्तित्व में था, संभवतः कामरूप साम्राज्य के वर्मन काल (350-650 AD) के दौरान, हमारे पास इन शताब्दियों के बहुत कम विवरण हैं। यह क्षेत्र उस समय हिंदू था और ब्राह्मणवादी पुरोहितवाद ने कामाख्या की देवी की पूजा को शर्मनाक और मूर्तिपूजक माना होगा।