नरोदा पाटिया के निवासियों का कहना "इस भाजपा युग में न्याय की कोई उम्मीद नहीं की जा सकती" | There Is No Hope Of Justice For Naroda Patiya Massacre.

नरोदा पाटिया के निवासियों का कहना "इस भाजपा युग में न्याय की कोई उम्मीद नहीं की जा सकती" | There Is No Hope Of Justice For Naroda Patiya Massacre.

Naroda Patiya Massacre

अहमदाबाद: जिस तरह से नरोदा पाटिया नरसंहार के मामले में गुनहगार माया कोडनानी को संदेह का लाभ देकर ट्रायल कोर्ट के फैसले को मुख्या न्याययालय से छोड़ दिया गया उस से लोगों में क़ानून के प्रति संदेह उत्पन हो गया है | इस तरह के लोगों को राजनीतिक लाभ मिल जाता है और जिसतरह के दौर से इस वक़्त यह देश गुज़र रहा है उस में न्याय का मिलना लगभग नामुमकिन ही दिख रहा है यह बात वहां के लोगों ने हमसे कही |

उन्होंने उस भयानक दिनों को याद करके बताया के किसतरह से हिंदुत्व गुंडों ने बच्चों और औरतों का सरे आम क़त्ल किया, आगज़नी की और उन्ही में से एक मुस्लिम खातून जिनका नाम फहमीदा पठान था और जिनकी आयु 39 वर्ष थी उनके ऊपर उन संघियों ने मानौता से गिरा हुआ काम किया, उनके घर को आग के हवाले कर दिया | वह पीड़िता गर्भवती थी और अपने कोख में  5 महीने के बचे को लिए अपने पति के साथ घर से बाहर भागी जहाँ उनका पैर फिसलने के कारन गर्भपात हो गया |

हादसे को दुहराते हुए फहमीदा पठान ने हमें बताया की "मैंने मायाबेन, जयदीप पटेल और बाबूभाई को खुद भीड़ का नेतृत्व करते हुए देखा था। कुछ लोगों ने मेरा पीछा किया और चिल्लाया 'उस मुस्लिम महिला को मार डालो'। मुझे अपने पति और दो बच्चों के साथ भागना पड़ा। मैं उस वक़्त तक भागती रही जब तक मैं गिर कर बेहोश नहीं गयी और और इससे मेरा गर्भपात हो गया | वह भयानक रात मैं कैसे भूल सकती हूँ |

फहमीदा पठान शुरू में पिराना डंपिंग मैदानों के पास एक राहत शिविर में चले गए, लेकिन उन्हें अपने पति यूसुफ के स्वास्थ्य के खराब होने के बाद वहां से वापस जाने के लिए मजबूर होना पड़ा। चार साल पहले उनकी मृत्यु हो गई।

फैसले का अफ़सोस करते हुए पठान ने कहा, "जब इस तरह के लोगों को उनके गंभीर अपराध के लिए दोषी ठहराया जाए और बाद में उन्हें छोड़ दिया जाये तो हम कैसे हमारे लिए 'अच्छे दीन' की उम्मीद कर सकते हैं?"

फेहेमिदा पठान ने पूछा, "क्या मैं पिराना में अपने पुराने स्थान पर जा सकता हूं? क्या फिर से दोबारा दंगे नहीं होंगे? क्या सब कुछ सुरक्षित होगा ? "

मुनिनी मंसुरी (40) इलाके की एक अन्य महिला ने कहा, "हमें कुछ मौकों के दौरान अदालत के फैसले, राइट विंग और चुनाव तिथियों पर प्रक्रियाओं के दौरान इस इलाके को छोड़ना होगा क्योंकि हम नहीं जानते के हम यहाँ कबतक सुरक्षित हैं ।" 

हालिया दिनों में हमने जिसतरह के फैसले देखा है उस से संदेह उत्पन हो चूका है और धीरे धीरे लोगों का ख़ास कर देश के एक तबके का भरोसा हिंदुस्तान की अदलिया से उठता दिख रहा है | मक्का मस्जिद बम ब्लास्ट मामले में भी आरोपियों को बरी कर दिया गया, माया कोडनानी जैसे हिंदुत्व आतंकी को भी बेल दे दी गयी, जस्टिस लाया केस को तोह अदालत के ज़रिये बिना जांच किये ही सरे से ख़ारिज कर दिया गया ऐसे हालात में संदेह तोह जाता है के किया उच्य न्यायालय भी राजनीतिक दबाओ में काम कर रहा है ?

टिप्पणियाँ