"गुजरात" | वे पैदा होते ही मुस्लिमों के लिए ढेर सारा नफरत लेकर पैदा होते हैं | यहाँ के ज्यादातर लोग मुसलमानों के प्रति घृणा उनकी रोज़मर्राह के ज़िन्दगी का हिस्सा है। Gujrat | They Born With Loads Of Hatred Against The Muslim Community| Now It Became Their Daily Routine To Hate Muslims|
"गुजरात" | वे पैदा होते ही मुस्लिमों के लिए ढेर सारा नफरत लेकर पैदा होते हैं | यहाँ के ज्यादातर लोग मुसलमानों के प्रति घृणा उनकी रोज़मर्राह के ज़िन्दगी का हिस्सा है।
Gujrat | They Born With Loads Of Hatred Against The Muslim Community| Now It Became Their Daily Routine To Hate Muslims|
मुस्लिम वोट? किया भारत में मुस्लिम जीवन कोई अहमियत रखती भी है, 'चुनाव के दिन का हाल एक गुजराती डॉक्टर के हवाले से ।
अहमदाबाद, गुजरात - एक महीने पहले जब मैंने हनीफ लकड़ावाला से बात की थी, तब 67 वर्षीय यह गुजराती डॉक्टर शांत दिखाई दिए, लेकिन राज्य में चल रहे विधानसभा चुनावों के लिए मुसलमानों के प्रति रवैय्ये पर उनकी निराशा साफ़ दिखाई दे रही थी यहां तक कि फोन पर भी।
जब मेरी अहमदाबाद में शुक्रवार को उनसे मुलाकात हुई थी, विधानसभा चुनाव से ठीक एक दिन पहले, बहुत शांत शांत दिखाई पद रहे थे और सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता, नरम लहजे में, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता शैलेश मेहता के प्रति आक्रोश जताया था जिन्होंने हाल ही में यह कहा था कि गुजरात के लोग सुनिश्चित करें कि दाभोई का शहर दुबई में तब्दील न होने पाए और अगर वह ऐसा नहीं चाहते तोह उन्हें सांसद चुनें ।
दुबई वाले इस कमेंट के बारे में भाजपा नेता ने रैली में गुजरती हिन्दुओं को डराते हुए कहा के मुस्लिम समुदाय उनके लिए बहुत बड़ा खतरा है ।
"गुजरात के ज्यादातर लोग इस गन्दी मानसिकता से घ्रस्त हैं और मुसलमानों के प्रति घृणा उनकी रोज़मर्राह के ज़िन्दगी का हिस्सा बन गई है। वे पैदा होते ही मुस्लिमों के लिए ढेर सारा नफरत लेकर पैदा होते हैं । डॉक्टर ने कहा।
ना सिर्फ लकड़ावाला चार दशकों से झुग्गियों में सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार के लिए जाने जाते हैं बल्कि 2002 के सांप्रदायिक दंगों के वजह से हजारों मुसलमानों कि विस्थापित के बाद में पुनर्वास के काम के लिए प्रसिद्ध हैं ।
मैं लकड़वाला से बातचीत करके वापस लौटा तोह ख्याल आया के क्या उन्होंने कांग्रेस के लिए वोट देने के बारे में अपना मन बना लिया है, जो कि "एम" शब्द के बिना मुस्लिम वोट लेने के लिए गुजरात चुनावों के प्रचार के माध्यम से यहाँ आये थे।
राहुल गांधी के मंदिर-दौरे का साक्षी होने के बाद, एक मुस्लिम पड़ोस के किसी भी दौरे के बिना, कोई भी दरगाह या मस्जिद के तरफ उन्होंने रुख तक नहीं किया । इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों पर नोटा (उपरोक्त कोई भी नहीं ) बटन को छोड़कर लकड़ावाला के लिए दूसरा कोई बटन कोई अहमियत नहीं रखता।
डॉक्टर ने अपने दुःख को रिले करने के लिए कोई शब्द नहीं बनाया।
"क्या मुस्लिम वोट ? क्या मुसलमानो की ज़िन्दगी हिंदुस्तान में कोई मायने भी रखती है ? " उन्होंने एक हिंदू आतंकी शम्भुनाथ का ज़िक्र करते हुए बताया के किस तरह एक हिन्दू आतंकी एक मुस्लमान को काम का झांसा देकर राजस्थान लेकर आता है और फिर पूरी प्लानिंग से उसका भयानक और दर्दनाक मर्डर करता है फिर उसको ज़िंदा जलाता है और फिर इसका लाइव वीडियो बनाकर पुरे देश को चैलेंज करता है और देश में रह रहे 90 करोड़ हिन्दू इसपर खामोश रहते हैं और कुछ हिन्दू सोशल मीडिया पर उसको परमवीर चक्र देने का ज़िक्र भी करता है और पूरा पर्शाशन खामोश रहता है । इतना ही नहीं उस ५० साल के ग़रीब मज़दूर को लव जिहाद का नाम देकर मामले को अलग रुख दिया जाता है और उस मज़दूर के परिवार की तकलीफ को कोई नहीं पूछता बल्कि उस हैवान को बचने के तरीके निकाले जाते हैं ।
इसके बाद डॉक्टर ने अलवर में डेयरी किसान पहलू खान की मौत और हरियाणा में सोलह वर्षीय जुनैद की मौत का ज़िक्र किया। उन्होंने बताया के "मुझे नहीं लगता कि मुस्लिम ज़िन्दगी यहाँ कोई अहमियत भी रखती है"
"यह एक विधानसभा चुनाव है। आप पार्टी की यहां कोई संभावना नहीं है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हम भाजपा को पराजित करें और केवल कांग्रेस ही भाजपा को इसवक्त हरा सकती है।" हमारे पास इसके इलावा दूसरा कोई और उपाय है भी नहीं
गुजरात में कुल 9% आबादी वाले मुसलमानों हैं जिनको को राजनीतिक रूप से दरकिनार कर दिया गया है, खासकर जब 199 5 में भाजपा सत्ता में आई थी।
1980 में 12 सांसदों में से, राज्य विधानसभा में मुसलमानों की संख्या में लगातार गिरावट आई है। 2002 में, तीन मुस्लिम सांसदों के रूप में चुने गए, 2007 में पांच और 2012 में दो। 2017 में, कांग्रेस ने छह मुस्लिम उम्मीदवारों को चुना, जबकि भाजपा के पास एक भी नहीं है।
राष्ट्रीय स्तर पर, कांग्रेस धर्मनिरपेक्षतावाद बनाम कट्टरपंथी मानसिकता को आगे लेकर बढ़ रही है, जबकि गुजरात में पार्टी का अभियान भाजपा की हार पर ज़ोर देना है, यहाँ के लोगों को कोई भी जीते मगर हिन्दू ही जीते ऐसा सोच है ।
दीगर मुसलमानों की तरह वह "घेटों" में नहीं रहते जो मुस्लिम आबादी वाला इलाक़ा है बल्कि वह शुरू से उनके परिवार के साथ हमेशा हिंदुओं के साथ रहते आये हैं । लेकिन वह वह समय याद करते हैं जब वह अहमदाबाद में एक 35 वर्षीय मेडिकल प्रैक्टिशनर थे और उन्हें उनके मुस्लिम होने का एहसास जताया गया ।
"मैं काम से अपने घर से निकल रहा था और मुझे हिन्दू आबादी से भरे एक इलाक़े की तरफ जाना था । मेरे पड़ोसी मेरे पास आए और मुझे बताया कि आज बाहर मत जाओ। मैंने कहा क्यों, सांप्रदायिक हिंसा तोह यहाँ से कम से कम आठ से दस किलोमीटर दूर है । मैंने कहा कि यह तोह काफी दुरी पर है । लेकिन उन्होंने कहा 'हर कोई जानता है कि आप मुस्लिम हैं और आप इस वक्त खतरे में हैं।' पहली बार मुझे एहसास हुआ कि मैं मुस्लिम हूं और यहां तक कि सांप्रदायिक हिंसा दूर होने पर भी मुझे खतरा है। "
"यह पहली बार हुआ जब मुझे एहसास हुआ कि इस समाज में मेरी, मेरी योग्यताएं, मेरे काम कुछ भी मायने नहीं रखती । गुजरात में एकमात्र धर्म है "हिन्दू धरम" जो बस मायने रखती है । 1985 में, यह तोह और भी मुश्किल था कि हमें रहने के लिए एक घर भी मिल सके, और जब हमने दूसरे इलाकों में जाने की कोशिश की तोह कोई भी हमें रहने के लिए घर देने को तैयार नहीं था, उनसब ने नफरत से स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया था। हमें कोई भी एक घर देने के लिए तैयार नहीं था बाद में बड़ी मुश्किल से एक दोस्त के हवाले से मुझे रहने के लिए एक घर मिला वह भी इसलिए के उस घर में पहले से एक दक्षिण भारतीय समुदाय रहा करता था, जो हमें मिला, "डॉक्टर ने बताया।
जब 2002 में दंगे भड़काए गए , तो लकड़वाला और उनका परिवार अपने हिंदू मित्रों के साथ शरण लेने पर मजबूर हो गए, एक घर से दूसरे घर जा जाकर । उन्होंने कहा, "हम एक या दो दिनों के बाद दूसरे घर चले जाते ताकि किसी एक परिवार पर हमारा बोझ ना पड़े ।" 2002 के दंगे बहुत ही खराब थे। काफी भयानक था जिसका ज़िक्र तक मैं नहीं कर सकता ।"
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